बहुत ही हृदयद्रावक है। वह अधःपतित हिंदू समाज से उत्पीड़ित, भयातुरा एक दुःखमयी विधवा की व्यथामयी कथा है। वह उस खिन्नमना, भग्नहृदया, अभागिनी, ब्राह्मण वाला की वर्ता है, जिसके उपयोगी अंक से कवीर जैसा लाल गिरकर एक ऐसे स्थान में जा पड़ा कि जहाँ से उसकी परम हृदयोल्लासिनी ज्योतिर्माला फिर उसकी आँखों तक न पहुँची । तव भी मैं उसे एक प्रकार से भाग्यवती ही कहूँगा, क्योंकि उसका लाल किसी प्रकार सुरक्षित तो रहा। परम भाग्यहीना है वह हिंदू जाति और नितांत ही कुत्सित-कपाला है वह अायं वाला, जिसके न जाने कितने एक से एक सुंदर लाल कुप्रथा के कुचक्र में पड़कर अकाल ही इस धराधाम से लुप्त हो जाते हैं और अपनी उस गमनीय आलोकमाला के विकीर्ण करने का अवसर नहीं पाते, जो पतनशील हिंदू समाज का न जाने कितना अंधकार शमन करने में समर्थ होती। आह ! कहते हृदय दग्ध होता है कि तो भी हिंदू जाति वैसी ही निश्चल, निस्पंद है, वैसी ही विवेकशून्य और किं-कर्तव्य-विमूढ़ है । आज पाँच शतक वीत जाने पर भी उसकी मोह निद्रा वैसी ही प्रगाढ़ है। कव उसकी यह समाजध्वंसिनी मोहनिद्रा विदूरित होगी, ईश्वर ही जाने। ___ कहते हैं कि स्वामी रामानंद जी की सेवा में एक दिन उनका अनुरक्त एक ब्राह्मण उपस्थित हुआ। उसके साथ उसकी विधवा पुत्री भी थी। जिस समय इस संकोचमयी विधवा ने विनीत होकर उक्त महात्मा के श्री-चरण-कमलों में प्रणाम किया, उस समय अचानक उनके श्रीमुख से निकला- पुत्रवती भव । काल पाकर यह आशीर्वचन सफल हुश्रा और विधवा ने एक पुत्र जना। परंतु लोकलजावश, हिंदू,
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