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कबीर वचनावली प्रथम खंड कर्त्ता-निर्णय दोहा अछे पुरुष इक पेड़ है निरॅजन वाकी डार । तिरदेवा साखा भये पात भया संसार ॥ १ ॥ साहेब मेरा एक है दूजा कहा न जाय । दृजा साहेब जो कहूँ साहेब खरा रिसाय ॥ २ ॥ जाकं मुँह माथा नहीं नाहीं रूप कुरूप । पुहप वास ने पातरा पंमा तत्त्व अनृप ॥ ३ ॥ देवी माहिं विदेह है माहेब मुरति मरूप। अनंत लोक में रमि हा जाक रंग न कप ॥ ४ ॥ चार भुजा के भजन में भृति पर मय मंन । फबिग सुमिरै नानु को जा मुना अनंत ॥ ५ ॥ जनम मरन गहिन : गंगामाय माय । पतिमा यहि पीव की जिन गिरता मग काय ॥ ६ ॥ A. ना, नीदार महीनी गारि। मामा रमा: का विनारि॥ ७ ॥ ग करना नाना।