पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/६९

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.इसी रहस्यवाद की है। मुसलमान कवियों की प्रेमाख्यानक परं- परा के जायसी एक जगमगाते रत्न हैं। वे रहस्यवादी कवियों की ही एक लड़ी हैं जिनमें सूफियों के मार्ग से होते हुए भारतीय सर्वा- स्मवाद पाया है। सर्वात्मवाद-मूलक रहस्यवाद में 'माधुर्य भाव' का उदय हुआ, जो कबीर और प्रेमाख्यानक सब मुसलमान कवियों में विद्यमान है। वैष्णवों और सूफियों की उपासना माधुर्य भाव से युक्त होती है। दार्शनिको ने परमात्मा को पुरुष और जगत् को बा रूप प्रकृति कहा है। माधुर्य भाव इसी का भावुक रूप है जिसमें परमात्मा की प्रिय- तम के रूप में भावना की जाती है और जगत् के नाना रूप स्त्री रूप में देखे जाते हैं। मीराबाई ने तो केवल कृष्ण को ही पुरुष माना है, जगत् में पुरुष उन्हें और कोई दिखाई ही नहीं दिया। कबीर भी कहते हैं- (क) कहै कबीर ब्याहि चले हैं पुरिप एक अविनासी। (ख) सखी सुहाग राम मोहि दीन्हा ।। इस तरह के एक दो नहीं कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। राम की सुहागिन पहले अपना प्रेम निवेदन करती है- गोकुल नायक बीठुला मेरो मन लागौ तोहि रे । यह जीवात्मा का परमात्मा में लगन लगने का आरंभिक रूप है, इसे ब्याह के पहले का पूर्वानुराग समझना चाहिए । कभी वह वियोगिनी के रूप में प्रकट होती है और उस वियो- गाग्नि में जले हुए हृदय के उद्गार प्रकट करती है- यहु तन जालौं मसि करौं, लिखौं राम का नाउँ। लेखणि करौ करंक की, लिखि राम |पठाउँ ॥ परमात्मा के वियोग से जनित सारी सृष्टि का दुःख कितना घना होकर कबीर के हृदय में समाया है।