पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/६८

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है; अतएव पश्चिमी रहस्यवाद में भी इस भावना का प्राबल्य है। कबीर में भी यह भावना मिलती है-

बाप राम राया अब हूँ सरन तिहारी।

 उन्होंने परमात्मा को 'माँ' भी कहा     
   है-हरि जननी बालिक तेरा ।

परंतु भारतीय रहस्यवाद की विशेषता सर्वात्मवाद-मूलक होने में है जो भारतीयों की ब्रह्मजिज्ञासा का फल है। उपनिषदों और गीता का रहस्यवाद यही रहस्यवाद है। जिज्ञासु जब ज्ञानी की कोटि पर पहुंचकर कवि भी होना चाहता है तब तो अवश्य ही वह इस रहस्यवाद की ओर झुकता है। चिंतन के क्षेत्र का ब्रह्मवाद कविता के क्षेत्र में जाकर कल्पना और भावुकता का अाधार पाकर इस रहस्यवाद का रूप पकड़ता है। सर्वात्मवादी कवि के रहस्यो- द्भावी मानस में संसार उसी रूप में प्रतिबिंबित नहीं होता जिस रूप में साधारण मनुष्य उसे देखता है। वह परमात्मा के साथ सारी सृष्टि का प्रखंड संबंध देखता है जिसको चरितार्थ करने का प्रयत्न करते हुए जायसी ने जगत् के सब रूपों को दिखलाया है। जगत् के नाना रूप उसकी दृष्टि में परमात्मा से भिन्न नहीं हैं, उसी के भिन्न भिन्न व्यक्त रूप हैं। स्वातंत्र्य के अवतार, स्रोत्व का आध्या- त्मिक मूल समझनेवाले अँगरेजी के कवि शेली को भी सर्वात्मवादी रहस्यवाद ही "मर्मर करते हुए काननों में, झरनों में, उन पुष्पों की पराग-गंध में जो उस दिव्य चुंबन के सुखस्पर्श से सोए हुए कुछ बर्राते से मुग्ध पवन को उसका परिचय दे रहे हैं, इसी प्रकार मंद या तीव्र समीर में प्रत्येक आते जाते मेघ खंड की झड़ी में, वसंत- कालोन विहंगमों के कलकूजन में और सब ध्वनियों और स्तब्धता में भी अपनी प्रियतमा की मधुर वाणी सुनाई है। कबीर में ऊपर परिगणित कुछ अन्य रहस्यवादी भावनाओं के होते हुए भी प्रधानता