पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/३४

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१५७५ में हुई होगी। इस हिसाब से उनकी आयु ११६ वर्ष की होती है, जिस पर बहुत लोगों की विश्वास करने की प्रवृत्ति न होगी परंतु जो इस युग में भी असंभव नहीं है। __ यह कहा ही जा चुका है कि कबीरदासजी के जीवन की घटनाओं के संबंध में कोई निश्चित बात ज्ञात नहीं होती क्योंकि उन सबका आधार जनसाधारण और विशेष कर कबीर- ___ माता पिता पंथियों में प्रचलित दंतकथाएं हैं। कहते हैं कि काशी में एक सात्विक ब्राह्मण रहते थे जो स्वामी रामानंदजी के बड़े भक्त थे। उनकी एक विधवा कन्या थी। उसे साथ लेकर एक दिन वे स्वामीजी के आश्रम पर गए। प्रणाम करने पर स्वामीजी ने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। ब्राह्मण देवता ने चौक- कर जब पुत्री का वैधव्य निवेदन किया तब स्वामीजी ने सखेद कहा कि मेरा वचन तो अन्यथा नहीं हो सकता; परंतु इतने से संतोष करो कि इससे उत्पन्न पुत्र बड़ा प्रतापी होगा। आशीर्वाद के फल- स्वरूप में जब इस ब्राह्मण-कन्या का पुत्र उत्पन्न हुआ तो लोकलज्जा और लोकापवाद के भय से उसने उसे लहर वालाब के किनार डाल दिया। भाग्यवश कुछ ही क्षण के पश्चात् नीरू नाम का एक जुलाहा अपनी वो नीमा के साथ उधर से आ निकला। इस दंपति के कोई पुत्र न था। बालक का रूप पुत्र के लिये लालायित दंपति के हृदयों पर चुभ गया और वे इसी बालक का भरण पोषण कर पुत्रवान हुए। मागे चलकर यही बालक परम भगवद्भक्त कबीर हुआ। कबीर का विधवा ब्राह्मणकन्या का पुत्र होना असंभव नहीं, किंतु स्वामी रामानंदजी के आशीर्वाद की बात ब्राह्मण-कन्या का कलंक मिटाने के उद्देश्य से ही पीछे से जोड़ी गई जान पड़ती है, जैसे कि अन्य प्रतिभाशाली व्यक्तियों के संबंध में जोड़ी गई हैं। मुसलमान घर में पालित होने पर भी कबीर का हिंदू विचारों में सराबोर