पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/३३

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का संग्रह इस प्रति में किया गया है, उसे देखकर यह मानना पड़ेगा कि यह पहला संकलन नहीं था, वरन अन्य संकलनों के आधार पर पीछे से किया गया था, अथवा कोई आश्चर्य नहीं कि धर्मदास दो. संग्रह के ही आधार पर इसका संकलन किया गया हो। इस ग्रंथावली में कबीरदास जी के दो चित्र दिए गए हैं-एक युवावस्था का और दूसरा वृद्धावस्था का। पहला चित्र कलकत्ता म्युजियम से प्राप्त हुआ है और दूसरा मुझे कबीरपंथी स्वामी युगलानंदजी से मिला है। मिलान करने से दोनों चित्र एक ही व्यक्ति के नहीं मालूम पड़ते, दोनों की प्राकृतियों में बड़ा अंतर है । यदि दोनों नहीं तो इनमें से कोई एक अवश्य अप्रामाणिक होगा, दोनों ही अप्रामाणिक हो सकते हैं, परन्तु श्रीयुत युगलानंदजी वृद्धा- वस्थावाले चित्र के लिये अत्यन्त प्रामाणिकता का दावा करते हैं, जा ४६ वर्ष से अधिक अवस्थावाले व्यक्ति का ही हो सकता है। नहीं कह सकते कि यह दावा कहाँ तक साधार और सत्य है परंतु यदि यह ठीक है तो मानना पड़ेगा कि कबीरदासजी की मृत्यु संवत् १५०५ के बहुत पीछे हुई। इन सब बातों पर एक साथ विचार करने से यही संभव जान पड़ता है कि कबीरदास जी का जन्म १४५६ में और मृत्यु संवत् थ-साहव में कबीरदास की बहुत सी साखियां और पद दिए हैं। उनमें से बहुत से ऐसे हैं जो सं० १५६१ की हस्तलिखित प्रति में नहीं हैं। इससे यह मानना पड़ेगा कि या तो यह संवत् १५६१ वाली प्रति अधूरी है अथवा इस प्रति के लिखे जाने के १०० वर्ष के अंदर बहुत सी साखियाँ आदि कबीरदासजी के नाम से प्रचलित हो गई थीं, जो कि वास्तव में उनकी न थीं। यदि कबीरदास का निधन संवत् १५७५ में मान लिया जाता है तो यह बात असंगत नहीं जान पड़ती कि इस प्रति के लिखे जाने के अनंतर १४ वर्ष तक कबीरदासजी जीवित रहे और इस बीच में उन्होंने और बहुत से पद बनाए हों जो ग्रंथ-साहब में सम्मिलित कर लिए गए हों।