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रमैंणी

बाजी नाचै कौतिग देखा,जो नचावै सो किनहूं न पेखा ।
आप आप थैं जानियै',है पर नाहीं सोइ ।
कबीर सुपिनैं केर धन ज्यूं,जागत हाथि न होइ ।।
जिनि यहु सुपिनां फुर करि जांनां,और सबै दुखया दि न आंनां ।।
ग्यांन हीन चेतै नहीं सूता,मैं जाग्या विष हर भै भूता ।।
पारधी बान रहै सर सांधें,विषम बॉन मारै विष बांधें ॥
काल अहेड़ी संझ सकारा,सावज ससा सकल संसारा ॥
दावानल अति जरै विकारा,माया मोह रोकि ले जारा ।।
पवन सहाइ लाभ अति भइया.जम चरचा चहु दिसि फिरि गइया।।
जम के चर चहुं दिसि फिरि लागे,हंस पंखेरुवा अब कहां जाइबे।।
केस गहैं कर निम दिन रहई,जब धरि ऐंचैं तब धरि चहई ।
कठिन पासि कछू चलै न उपाई,जंम दुवारि सीझै सब जाई ।।
सोई त्रास सुनि रांम न गावै,मृगत्रिष्णां झूठी दिन धावै ।।
मृत काल किनहूं नहीं देखा,दुख कौं सुख करि सबही लेखा।
सुख करि मूल न चीन्हसि आभागी,चीन्हैं बिनां रहै दुख लागी।
नींब काट रम नींब पियारा,यू विष कू अंमृत कहै संसारा ॥
विष अंमृत एकै करि मांनां,जिनि चीन्हयां तिनहीं सुख मांनां ।।
अछित राज दिन दिनहि सिराई,अंमृत परहरि करि विष खाई॥
जांनि अजांनि जिन्है विप खावा,परे लहरि पुकारैं धावा ।।
विष के खायें का गुंन होई,जावेद न जाने परि साई ।।
मुरछि मुरछि जीव जरिहै आसा,कांजी अलप बहु खीर बिनासा ।।
तिल सुख कारनि दुख अस मेरू,चौरासी लख लीया फेरू ।।
अलप सुख दुख प्राहि अनंता,मन मैंगल भूल्यौ मैमंता ।।
दीपक जोति रहै इक संगा,नैन नेह मांनूं परै पतंगा।
सुख विश्रांम किनहूं नहीं पावा,परहरि साच झूठ दिन धांवा ।।
लालच लागे जनम सिरावा,अंति काल दिन आइ तुरावा ।