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कबीर-ग्रंथावली
कहै कबीर सुनहुँ रे संतौ,भ्रंमि परै जिनि कोई।
जस कासी तस मगहर ऊसर,हिरदै रांम सति होई ।। ४०२ ॥
ऐसी भारती त्रिभुवन तारै, .
तेज पुंज तहां प्रांन उतारै ।। टेक ।।
पाती पंच पहुप करि पूजा,
देव निरंजन और न दूजा ।।
तनमन सीस समरपन कीन्हां,
प्रगट जोति तहां आतम लीनां ।।
दीपक ग्यांन सबद धुनि घंटा,
परंम पुरिख तहां देव अनंता ।।
परम प्रकास सकल उजियारा,
कहै कबीर मैं दास तुम्हारा ।। ४०३ ।।
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