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पदावली

दिवस चारि की है पतिसाही ज्यूं बनि हरियल पात ॥
राजा भयौ गांव सौ पाये,टका लाख दस बात ।
रावन होत लंक की छत्रपति,पल मैं गई बिहात ।।
माता पिता लोक सुत बनिता,अति न चले संगात ।
कहै कबोर राम भजि बौरे,जनम अकारथ जात ॥ ४०० ॥

नर पछिवाहुगं अंधा।
चेति देखि नर जमपुरि जैहै,क्यूं बिसरी गोव्यदा ॥ टेक॥
गरभ कुंडिनल जब तूं बसता,उरध ध्यान ल्यौ लाया ।
उरध ध्यांन मृत मंउलि पाया,नरहरि नाव भुलाया ।।
बाल बिनोद छहूं रस भीनां,छिन छिन मोह बियापै ।
विष अंमृत पहिचानन लागौ,पांच भांति रम चाखै ।
तरन तेज पर त्रिय मुख जोवै,सर अपसर नहीं जांनै ।
अति उदमादि महामद मातौ,पाप पुनि न पिछनै ।।
प्यंडर केस कुसुम भये धौला,सेत पलटि गई बांनी ।
गया क्रोध मन भया जु पावस,कांम पियास मंदानी ।।
"तूटी गठि दया धरम उपज्या,काया कवल कुमिलांनां ।
मरती बेर बिसूरन लागौ,फिरि पीछैं पछितांनां ।।
कहै कबीर सुनहुं रे संतौ,धन माया कछू संगि न गया।
आई तलब गोपाल राइ की,धरती से न भया ॥ ४०१ ॥

लोका मति के भोरा रं।
जो कासी तन तजै कबीरा,तौरामहि कहा निहोरारे।टेक।।
तब हम वैसे अब हम ऐसे,इहै जनम का लाहा ।
ज्यूं जल मैं जल पैसि न निकसै,यूं दुरि मिल्या जुलाहा ।।
रांम भगति परि जाकौ हित चित,ताकौ अचिरज काहा।
गुर प्रसाद साध की संगति,जग जीतें जाइ जुलाहा ।।