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पदावली

इला प्यंगुला सुषमन नारी,बेगि बिलोइ ठाढो छछिहारी॥
कहै कबीर गुजरी बौरांनी,मटकी फूटी जोति समांनी ॥३५४॥

आसण पवन कियैं दिढ रहुरे,मन का मैल छाड़ि दे बौरे ॥टेक।।
क्या सींगी मुद्रा चमकायें,क्या विभूति सब अंगि लगायें ॥
सो हिंदु सो मुसलमांन,जिसका दुरम रहै ईमांन ।।
सो ब्रह्मा जो कथै ब्रह्म गियांन,काजी सो जान रहिमांन ।
कहै कबीर कंछू अांन न कीजै,रांम नांम जपि लाहा लीजै ।३५५।।

ताथैं कहिये लोकाचार,बेद कतेब कथैं व्यौहार ॥ टेक!।
जारि बारि करि आवै देहा,मूंवां पीछैं प्रीति सनेहा ।।
जीवत पित्रहि मारहि डंगा, मूवा पित्र ले घाल गंगा ।।
जीवत पित्र कूं अन न ख्वांवैं,मूंवां पीछैं प्यंड भरांवैं ॥
जोवत पित्र कूं बोनैं अपराध,मूंवां पीछैं देहि सराध ॥
कहि कबीर माहि अचिरज आवै,कऊवा खाइ पित्र क्यूं पावै।।३५६॥

नाम राम सुंनि बीनती मारी,
तुम्ह सूं प्रगट लोगनि सूं चोरी ॥ टेक ।।
पहलैं कांम मुगध मति कीया,ता भै कंपै मेरा जीया ।।
रांम राइ मेरा कह्या सुनीजै,पहले बकसि अब लेखा लीजै ।।
कहै कबीर बाप रांम राया,अबहूं सरनि तुम्हारी आया ॥३५७।।

अजहूं बीच कैसैं दरसन तोरा,
बिन दरसन मन मानैं क्यूं मोरा ॥ टेक ॥
हमहि कुसेवग क्या तुम्हहि अजानां,दुह मैं दोस कहा किन रांमां।
तुम्ह कहियत त्रिभवन पति राजा,मन बंछित सब पुरवन काजा ॥
कहै कबीर हरि दरस दिखावौ,
हमहि बुलावौ कै तुम्ह चलि आवौ ॥ ३५८ ॥