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पदावली

नांनां रंगैं भांवरि फेरी,गांठि जोरि बाबै पति ताई।
पूरि सुहाग भयौ बिन दूलह,चौक कै रंगि धरसौ सगौ भाई ॥
अपनें पुरिष मुख कंबहूं न देख्यौ,सती होत समझी समझाई ।
कहै कबीर हूं सर रचि मरि हूँ,तिरौं कंत ले तूर बजाई ॥२२६

  धीरैं धीरैं खाइबौ अनत न जाइबौ,
रांम रांम रांम रमि रहिबौ ।। टेक ।।
पहली खाई आई माई,पीछैं खैहूं सगौ जवाई ।
खाया देवर खाया जेठ,सब खाया सुसर का पेट ।
खाया सब पटण का लोग,कहै कबीर तब पाया जोग ।।२२७।।

  मन मेरौ रहटा रसनां पुरइया,
हरिं कौ नाउं लै लै काति बहुरिया ॥ टेक ।।
चारि खूंटी दोइ चमरख लाई,सहजि रहटवा दियौ चलाई ।।
सासू कहै काति बहू ऐसैं,विन कातैं निसतरियौ कैसैं ॥
कहै कबीर सूत भल काता,रहटां नहीं परम पद दाता ॥२२८॥

  अब की घरी मेरो घर करसी,
साध संगति ले मोकौं तिरसी ॥ टेक ।।
पहली को घाल्यौ भरमत डोल्यौ,सच कबहूं नहीं पायो ।
अब की धरनि धरी जा दिन थैं,मगलौ भरम गमायौ ।
पहली नारि सदा कुलवंती,सासू सुसरा मांनैं ।
देवर जेठ सबनि की प्यारी,पिय कौ मरम न जांनै।
अब की धरनि धरी जा दिन थैं,पीय सूं बान बन्यूं रे ।
कहै कबीर भाग बपुरी कौ,आइ रु रांम सुन्यूं रे ॥ २२ ॥
  मेरी मति बौरी रांम बिसारयौ,
किहि बिधि रहनि रहूं हो दयाल ।


(२२७) ख०-खाया पंच पटण का लोग ।