पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/१९

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प्रस्तावना

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काल की कठोर आवश्यकताएँ महात्माओं को जन्म देती हैं। कवीर का जन्म भी समय की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये _ हुआ था। अवसर के उचित उपयोग से अनभिज्ञ श्राविर्भाव-काल - और कर्मठता से उदासीन रहनेवाली हिंदू जाति की धर्मजन्य दयालुता ने उसे दासता के गर्त में ढकेल दिया था। उसका शूर-वीरत्व उसके किसी काम न आया। वीरता के साथ साथ वीर-गाथाओं और वीर-गीतों की अंतिम प्रतिध्वनि भी रणथंभौर के पतन के साथ ही विलीन हो गई। शहाबुद्दीन गोरी ( मृत्यु सं० १२६३ ) के समय से ही इस देश में मुसलमानों के पांव जमने लग गए थे, उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ( सं०१२६३- १२७३ ) नै गुलाम वंश की स्थापना कर पठानी सल्तनत और भी दृढ़ कर दी। भारत की लक्ष्मी पर लुब्ध मुसलमानों का विकराल स्वरूप, जिसे उनकी धर्मांधता ने और भी अधिक विकराल बना दिया था, अलाउद्दीन खिलजी ( सं० १३५२-१३७२ ) के समय में भली भांति प्रकट हुआ। खेतों में खून और पसीना एक करनेवाले किसानों की कमाई का आधं से अधिक अंश भूमि-कर के रूप में राज-कोप में जाने लगा। प्रजा दाने दाने को तरसने लगी। सोने चांदी की तो बात ही क्या, हिंदुओं के घरों में ताँबे पीतल के थाली लोटों तक का रहना सुलतान को खटकने लगा। उनका घोड़े की सवारी करना और अच्छे कपड़े पहनना महान् अपराधों में गिना जाने लगा। नाम मात्र के अपराध के लिये भी किसी की खाल खिंचवा- कर उसमें भूसा भरवा देना एक साधारण बात थी। अलाउद्दीन खिलजी के लड़के कुतुबुद्दीन मुबारक (संवत् १३७३.१३७७ ) के