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बेसास कौ अंग

मीठा खांण मधूकरी,भांति भांति कौ नाज ।
दावा किसही का नहीं,बिन विलाइति बड़ राज ॥ १३ ॥
मानि महातम प्रेम रस,गरवा तण गुण नेह ।
ऐ सबहीं अह लागया,जबहीं कह्या कुछ देह ॥ १४ ॥
मांगण मरण समान है,बिरला बंचै कोइ ।
कहै कबीर रघुनाथ सू,मतिर मंगावै मोहि ॥ १५ ॥
पांडल पंजर मन भवर,अरथ अनूपम बास।
रांम नाम सींच्या अंमी,फल लागा बेसास ॥ १६ ॥
मेर मिटी मुकता भया,पाया ब्रह्म बिसास ।
अब मेरे दूजा को नहीं,एक तुम्हारी पास ।। १७ ॥
जाकी दिल मैं हरि बसै,सो नर कलपै काइ ।
एक लहरि समंद की,दुख दलिद्र सब जाइ ॥ १८ ॥
पद गाये लैलीन है,कटी न संसै पास ।
सबै पिछोड़े थोथर,एक बिना बेसास ॥ १९ ।।
गांवण ही मैं रोज है,रोवण ही मैं राग।
इक बैरागी ग्रिह मैं,इक गृहीं मैं बैराग ॥ २० ॥
गाया तिनि पाया नहीं,अण-गांयां थें दूरि ।
जिनि गाया बिसवास सुं,तिन राम रह्या भरपूरि ॥२१॥५८०॥

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हसतो चढ़िया ज्ञान के,सहज दुलीचा डारि ।
स्वान-रूप संसार है,पड़या मुसो झपि मारि ॥ ११ ॥
(१५) ख०-जगनांथ सै।
(१६) इसके श्रागे ख० प्रति में ये दोहे हैं-
कबीर मरौ पै मांगी नहीं,अपणे तन के काज ।
परमारथ के कारण,मोहि मांगत न पावै लाज ॥ २० ॥
भगत भरोसै एक के,निधरक नीची दीठि ।
तिनकूकरम न लागसी,रान ठकोरी पीठि ॥ २१ ॥