पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/९८

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
९५
चौथा खण्ड
 

कपालकुण्डलाने अभिमान भरे स्वरमें कहा—“आओ, मैं अविश्वासिनी हूँ या क्या हूँ, अपनी आँखसे देख लो।”

नवकुमारने फिर कुछ न कहा। उन्होंने कपालकुण्डलाका हाथ त्याग दिया और घरके अन्दर चले गये। कपालकुण्डला अकेली जङ्गलमें घुसी।

 


:२:

जंगलमें

—“Tender is the night.
and happy the queen moon is on her throne
Clustered around by all her starry fays.
But see there is on light.”
—Keats.

[]

सप्तग्रामका यह भाग जङ्गलमय है, यह बहुत कुछ पहले लिखा जा चुका है। गाँवसे थोड़ी ही दूर पर घना जङ्गल है। कपालकुण्डला एक संकीर्ण जङ्गली राहसे अकेली औषधिकी खोजमें चली। निस्तब्ध रात्रि थी, शब्दहीन, किन्तु मधुर। मधुर रात्रिमें स्निग्ध और उज्ज्वल किरण फैलाते हुए चन्द्रदेव आकाशमें रुपहले बादलोंको अतिक्रम करते अपनी यात्रा कर रहे थे। नीरव हो वृक्षके पत्ते उन किरणोंसे अठखेलियाँ कर रहे थे। शान्त लतागुल्मोंके बीच फूल खिलकर सफेद चाँदनीमें अपने अस्तित्वसे होड़ लगा रहे थे। पशु-पक्षी सब नीरव थे, प्रकृति नीरव थी, लेकिन कभी-

  1. अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:

    —“Tender is the night,
    And haply the Queen moon is on her throne
    Clustered around by all her starry fays;
    But here there is no light.”
    Keats.