:७:
उपनगरके किनारे
“I am settled; and bent up.
Each corporal agent to this terrible feat.”
Macbeth.
दूसरे कमरेमें जाकर लुत्फुन्निसाने अपना दरवाजा बन्द कर लिया। वह दो दिनोंतक उस कमरेसे बाहर न निकली। इधर दो दिनोंमें उसने अपने कर्त्तव्याकर्त्तव्यका निश्चय कर लिया। स्थिर होकर वह दृढ़प्रतिक्ष हुई। सूर्य अस्त होना चाहते थे। उस समय लुत्फुन्निसा पेशमनकी सहायतासे अपना श्रृंगार करने लगी। आश्चर्यकारी वेशभूषा थी! पेशवाज नहीं,पाजामा नहीं, ओढ़नी नहीं; रमणी वेशका कोई चिह्न नहीं था। जैसी वेशभूषा उसने की, उसे शीशेमें देखकर उसने पेशमनसे पूछा,—“क्यों पेशमन! क्या मैं पहचानी जा सकती हूँ?”
पेशमन बोली—“किसकी मजाल है?”
लु०—तो मैं जाती हूँ। मेरे साथ कोई भी न जायगा।
पेशमन कुछ संकुचित होकर बोली—“दासीका कसूर माफ हो तो एक बात पूछूँ?”
लुत्फुन्निसाने पूछा—“क्या?”
पेशमनने पूछा—“आपकी मन्शा क्या है?”
लुत्फुन्निसा बोली—“केवल यही कि कपालकुण्डलाका उसके पतिसे चिरविच्छेद हो जाये इसके बाद वह मेरे होंगे।”
पे०—बीबी! जरा मजेमें विचार कर लीजिए; वह घना जंगल होगा; रात हुआ चाहती है; आप अकेली रहेंगी।