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कपालकुण्डला
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गीरशाह हो गये। अब तुम खुसरूके लिए व्यस्त न होना। इस उपलक्ष्यमें कोई तुम्हारी शत्रुता न करे, इस चेष्टाके लिये तुरन्त आगारा आ जाओ।”

अकबर बादशाहने किस तरह इस षड्यन्त्रकी विफल किया, यह इतिहासमें अच्छी तरह वर्णित है। इस तरह उसके विस्तारकी आवश्यकता नहीं।

पुरस्कार देकर दूतको बिदा करनेके बाद मोतीने वह पत्र पेशमन् को पढ़कर सुनाया। पेशमन्‌ने सुनकर कहा—“अब उपाय?”

पे॰—(थोड़ा सोचकर) अच्छा, हर्ज ही क्या है? जैसी थी, वैसे ही रहोगी। मुगल बादशाहकी परस्त्रीमात्र ही किसी दूसरे राज्य की पटरानीकी अपेक्षा भी बड़ी है।

मोती—(मुस्कराकर) यह हो नहीं सकता। अब उस राजमहलमें मैं रह नहीं सकती। शीघ्र ही मेहरके साथ जहाँगीरकी शादी होगी। मेहरुन्निसा को मैं बचपनसे अच्छी तरह जानती हूँ। एक बारके पुरवासिनी हो जानेपर वही बादशाहत करेगी। जहाँगीर तो नाममात्र के बादशाह रहेंगे। मैंने उनके सिंहासनकी राहमें बाधा उपस्थित की थी, यह उनसे छिपा न रहेगा। उस समय मेरी क्या दशा होगी?

पेशमन्‌ने प्रायः रुआंसी होकर कहा—“तो अब क्या?”

मोतीने कहा,—“एक भरोसा है। मेहरुन्निसाका चित्त जहाँगीरके प्रति कैसा है? वह जैसी तेजस्विनी है, यदि वह जहाँगीरके अति अनुरागिनी न होकर वस्तुतः शेर अफगनसे प्रेम करती होगी, एक नहीं सौ शेर अफगनके मरवाये जानेपर भी मेहर कभी जहाँगीरसे शादी न करेगी। और यदि सचमुच मेहर भी जहाँगीरकी अनुरानिगी हो, तो फिर कोई भरोसा नहीं है।”

पे॰—मेहरुन्निसाका हृदय कैसे पहचान सकोगी?