कल प्रचार करुँगा कि वह युद्धमें आहत हुए हैं। तुम उन्हें देखने के बहानेसे कल ही उड़ीसाको यात्रा करो। वहाँका कार्य समाप्त कर तुरंत वापस जाओ।’
लुत्फुन्निसा इसपर राजी हो गयी। वह अपना कार्य कर लौटते समय पाठकोंसे मिली है।
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:२:
दूसरी जगह
“जे यारी ते पड़े लोके उठे ताइ धरे।
बारेक निराश होये के कोथाय मरे॥
तूफाने पतित किन्तु छाड़ि बना हाल।
आजि के विफल होलो, होते पारे काल॥
—नवीन तपस्विनी
जिस दिन नवकुमारको बिदा कर मोती बीबी या लुत्फुन्निसाने बर्द्धमानकी यात्राकी, उस दिन वह एकदम बर्द्धमान तक पहुँच न सकी। दूसरी चट्टीमें रह गयी। संध्याके समय पेशमन्के साथ बैठकर बातें होने लगीं। ऐसे समय सहसा मोती बीबीने पेशमन्से पुछा,—“पेशमन्! मेरे पतिको देखा, कैसे थे?”
पेशमन्ने कुछ विस्मित होकर कहा,—“इसके क्या माने?” मोती बोली,—“सुन्दर थे या नहीं?”
नवकुमारके प्रति पेशमन्को विशेष विराग हो गया था। जिन अलङ्कारोंको मोती ने कपालकुण्डलाको दे दिया उनके प्रति पेशमन्
- ↑ अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:
“जे माटीते पड़े लोके उठे ताइ धरे।
बारेक निराश होये के कोथाय मरे॥
तूफाने पतित किन्तु छाड़िबो ना हाल।
आजिके विफल होलो, होते पारे काल॥”
नवीन तपस्विनी।