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कपालकुण्डला
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महिषी बननेकी बधाई लुत्फुन्निसा दे रही थी; प्रत्युत्तरमें खुसुरूकी जननी ने कहा—“बादशाहकी प्रधान महिषी होने से मनुष्य जन्म सार्थक अवश्य होता है, लेकिन सर्वश्रेष्ठता उसकी है जिसका पुत्र बादशाह हो और वह बादशाहजननी बने।” यह उत्तर सुनते ही लुत्फुन्निसाके हृदयमें एक चिन्तनीय अभिसन्धिका उदय हुआ। उसने उत्तर दिया—“तो ऐसा ही क्यों न हो! वह भी आपके ही इच्छाधीन है।” बेगमने पूछा—“यह कैसे?” चतुराने उत्तर दिया—“युवराज खुसरूको ही सिंहासनपर बिठाइये।”

इस बात का बेगमने कोई जवाब न दिया। उस दिन फिर यह प्रसङ्ग न उठा। लेकिन यह बात किसीको भूली नहीं। स्वामीके बदले पुत्र राज्यसिंहासनपर आसीन हो, यह बेगमकी इच्छा अवश्य है, लेकिन मेहरुन्निसाके प्रति सलीम का प्रेम जैसे लुत्फुन्निसा के हृदयमें काँटेकी तरह खटकता है, वैसे ही बेगमके हृदयमें भी खटकता है। मानसिंहकी बहन एक तुर्कमानकी कन्या की आज्ञानुवर्तिनी होकर कैसे रह सकती है? लुत्फुन्निसाका भी इस विषय में गहरा तात्पर्य था। दूसरे दिन फिर यह प्रसङ्ग उत्थापित हुआ। दोनोंका एक अभिमत स्थिर हुआ।

सलीमको त्यागकर खुसरूको सिंहासनपर बैठाना कोई असम्भव बात न थी। इस बातको लुत्फुन्निसाने बेगमको अच्छी तरह समझा दिया। उसने पूछा,—“मुगल साम्राज्य राजपूतोंके बाहुबलपर स्थापित हुआ है और आज भी निर्भर करता है। वही राजपूत कुल-तिलक मानसिंह खुसरूके मामा हैं और प्रधान राजमंत्री खान आजम खुसरूके श्वसुर हैं, इन दोनों आदमियोंके खड़े होनेपर कौन इनकी आज्ञा न मानेगा? फिर किसके बलपर युवराज सिंहासनपर अधिकार कर सकते हैं? राजा मानसिंहको राजी करना आपके ऊपर है। खान आजम और अन्यान्य उमराको