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तृतीय खण्ड

भूतपूर्वमें

“कष्टोऽयं खलु मृत्यु भावः”

कपालकुण्डलाको लेकर नवकुमारने जब सरायसे घरकी यात्रा की तो मोती बीबीने वर्द्धमानकी तरफ यात्रा की। जबतक मोती बीबी अपनी राह तय करें, तबतक हम उनका कुछ वृत्तान्त कह डालें। मोतो बीबीका चरित्र जैसा महापातकसे भरा हुआ है, वैसे ही अनेक तरहसे सुशोभित है। ऐसे चरित्रका विस्तृत वृत्तान्त पढ़नेमें पाठकोंको अरुचि न होगी।

जब इनके पिताने हिन्दू-धर्म बदलकर मुस्लिम धर्म ग्रहण किया, तो उस समय इनका हिन्दू नाम बदलकर लुत्फुन्निसा पड़ा। मोती बीबी इनका नाम कभी नहीं था। फिर भी छिपे वेशमें देश-विदेश भ्रमणके समय यह कभी-कभी नाम पड़ जाता है। इनके पिता ढाकामें आकर राजकार्यमें नियुक्त हुए। लेकिन वहाँ अनेक स्वदेशीय लोगोंका आना-जाना हुआ करता था। अपने देशमें जान-पहचानवालोंके सामने विधर्मी होकर रहना भला जान नहीं पड़ता। अतएव वह कुछ दिनोंमें अच्छी ख्याति लाभ कर अपने मित्र अनेक उमरा लोगोंसे पत्र लेकर सपरिवार आगरे चले गये। अकबर बादशाहके सामने किसीका गुण छिपा नहीं रहता था। शीघ्र ही इन्होंने अपने गुण