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कपालकुण्डला
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श्यामा०—क्यों, भाग्यमें क्या है? भाग्यमें सुख है। तुम ठंढी साँस क्यों लेती हो?
मृण्मयीने कहा—सुनो! जिस दिन स्वामीके साथ यात्रा की, यात्राके समय भवानीके पैरपर बेल-पत्ती चढ़ाने गयी। मैं बिना माताके पैरपर बेल-पत्र चढ़ाये कोई काम नहीं करती थी। कार्य यदि शुभजनक होता, तो माता अपने पैरसे पत्र गिराती नहीं थी। यदि अमंगलका डर होता है तो माताके पैरसे वह बेलपत्र गिर पड़ता है। अपरिचित व्यक्ति के साथ विदेश जाते शंका मालूम हुई। शुभाशुभ जाननेके लिए ही मैं यात्राके समय गयी। लेकिन माताने त्रिपत्र धारण नहीं किया, अतएव भाग्यमें क्या है, नहीं कह सकती।
मृण्मयी चुप हो गयी। श्यामा सुन्दरी सिहर उठी।
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