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प्रथम खण्ड
 

इससे क्या फायदा होगा? तुम्हारा प्राण-नाश तो होगा ही, साथ ही इस बेचारीपर भी उसका क्रोध प्रशमित न होगा। इसका केवल एक ही उपाय है।”

नव०—“कैसा उपाय?”

अधि०—“आपके साथ इसका पलायन। लेकिन यह कठिन है। हमारे यहाँ रहने पर दो-एक दिनमें ही तुम लोग फिर पकड़ लिए जाओगे। इस देवालयमें उस महापुरुष का आना-जाना प्रायः हुआ करता है। अतः कपालकुण्डलाके भाग्यमें अशुभ ही दिखाई पड़ता है।”

नवकुमारने आग्रहके साथ पूछा—“मेरे साथ भागनेमें कठिनाई क्या है?”

अधि०—“यह किसकी कन्या है—किस कुलमें इसका जन्म है, यह आप कुछ भी नहीं जानते। किसकी पत्नी है—किस चरित्रकी हैं, यह भी नहीं जानते। फिर क्या आप इसे संगिनी बनायेंगे? संगिनी बनाकर ले जाने पर भी क्या आप इसे अपने घरमें स्थान देंगे? और यदि आपने स्थान न दिया तो यह अनाथा कहाँ जायेगी?”

नवकुमारने थोड़ा विचार करने के बाद कहा—“अपनी प्राणरक्षिकाके लिए ऐसा कोई कार्य नहीं, जिसे मैं न कर सकूँ। यह मेरी परिवारभुक्ता होकर रह सकेंगी।”

अधि०—ठीक है। लेकिन जब आपके आत्मीय स्वजन पूछंगे कि यह किसकी स्त्री है तो आप क्या उत्तर देंगे?

नवकुमारने चिन्ता करके कहा—“आप ही इसका परिचय मुझे बता दें। आप जो कहेंगी मैं वही कहूँगा।”

अधि०—“अच्छा। लेकिन इस लम्बी राहमें कोई पन्द्रह दिनों तक एक दूसरेकी बिना सहायताके कैसे रह सकोगे? लोग देख-सुनकर क्या कहेंगे? फिर, सम्बन्धियोंसे क्या कहोगे? इधर मैं भी इस