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प्रथम खण्ड
 

अधि०–“निवास।”

नव०—“सप्तग्राम।”

अधि०—“आपका गोत्र?”

नव०—“बन्ध्यघटी।”

अधि०—“कितनी शादियाँ की हैं?”

नव०—“केवल एक।”

नवकुमारने सारी बातें खोलकर नहीं कहीं। वास्तवमें एक भी स्त्री न थी। उन्होंने रामगोविन्द घोषकी कन्याके साथ शादीकी थी। शादीके बाद कुछ दिनों तक पद्मावती पिताके घर रही, बीच-बीचमें ससुराल भी आती थी। जब उसकी उम्र तेरह वर्षकी हुई, तो उसी समय उसके पिता सपरिवार पुरुषोत्तम दर्शनके लिए गये। उस समय पठान लोग अकबर बादशाह द्वारा बंगालसे विताड़ित होकर सदलबल उड़ीसा में थे। उनके दमनके लिए अकबर द्वारा यथोचित यत्न हो रहा था। जब रामगोविन्द घोष उड़ीसासे वापस होने लगे, तो उस समय दोनों दलोंमें युद्ध शुरू हो गया। अतः घर लौटते समय वह सपरिवार पठानोंके हाथ पड़ गये। पठान उस समय विवेकशून्य असभ्य हो रहे थे वह लोग निरपराधी पथिकोंके प्रति अर्थके लिए बल प्रकाश करने लगे। रामगोविन्द जरा कड़वे मिजाजके थे, पठानोंको गाली आदि दे बैठे। इसका फल यह हुआ, कि वह लोग गिरफ्तार कर लिए गय। अन्तमें घोष महाशयको जब अपना धर्म परित्याग करना पड़ा, तो कैदसे छुटकारा मिला।

इस तरह रामगोविन्द सपरिवार प्राण लेकर घर तो अवश्य आये, किन्तु विधर्मी मुसलमान होने के कारण आत्मीयजन द्वारा बहिष्कृत हो गये। उस समय नवकुमारके पिता जीवित थे; अतः उन्हें भी जातिच्युत होनेके डरसे जातिभ्रष्ट पुत्रवधूका त्याग