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प्रथम खण्ड
 

है लेकिन शव नहीं है! नवकुमारने अनुमान किया कि उन्हें ही शव बनना पड़ेगा।

कितनी ही लताकी सूखी हुई कठिन डालियाँ वहाँ लाकर पहलेसे रखी हुई थीं। कापालिकने उसके द्वारा नवकुमारको दृढ़तापूर्वक बाँधना शुरू किया। नवकुमारने शक्तिभर बलप्रकाश किया; लेकिन बल लगाना व्यर्थ हुआ। उन्हें विश्वास हो गया कि इस उम्रमें भी कापालिक मस्त हाथी जैसा बल रखता है। नवकुमारको जोर लगाते देखकर कापालिकने कहा—मूर्ख! किस लिए जोर लगाता है? तेरा जन्म आज सार्थक हुआ। भैरवी पूजा में तेरा मांसपिण्ड अर्पित होगा। इससे ज्यादा तेरा और क्या सौभाग्य हो सकता है?”

कापालिकने नवकुमारको खूब कसकर बाँधकर छोड़ रखा। इसके बाद वह वधके पहलेकी प्राथमिक पूजामें लग गया। तबतक नवकुमार बराबर अपने बन्धनको तोड़नेकी कोशिश करते रहे। लेकिन वह सूखी लताएँ गजबकी मजबूत थीं—बन्धन बहुत दृढ़ था। मृत्यु अवश्य होगी! नवकुमारने अन्तमें इष्टदेव के चरणोंमें ध्यान लगाया। एक बार जन्मभूमिकी याद आयी, अपना सुखमय आवास याद आया, एक बार बहुत दिनोंसे अन्तर्हित माता-पिताका स्नेहमय चेहरा याद आया और दो-एक बूंद आँसू ढुलककर रेतीपर गिर पड़े। कापालिक प्राथमिक पूजा समाप्त कर खड्ग लेनेके लिए अपने आसनसे उठ खड़ा हुआ, लेकिन जहाँ उसने खड्ग रखा था, वहाँ वह न मिला, आश्चर्य! कापालिक कुछ विस्मित हुआ। कारण, उसे पूरी तरह याद था, कि शामको उसने खड्गको यथास्थान रख दिया था। फिर स्थानांतरित भी नहीं किया, तब कहाँ गया? कापालिकने इधर-