पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/८४

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इन बातों को सुनते ही चारों तरफ से 'त्राहि त्राहि' की आवाज आने लगी। राजा के तो होश उड़ गए। अब राजा को विश्वास हो गया कि यह दर्बार केवल इसलिए लगाया गया है कि यहाँ की कुल रिआया के सामने मेरा कसूर साबित कर दिया जाय और मैं नालायक और बेईमान ठहराया जाऊँ। यह सिंहासन भी शायद इसलिए रखवाया गया है कि इस पर रिआया की तरफ से नाहरसिंह या बीरसिंह बैठाया जाय। ओफ, अब किसी तरह जान बचती नजर नहीं आती! मेरे कर्मों का फल आज पूरा हुआ चाहता है! अगर मैं अपनी फौज का इन्तजाम न करता तो मुश्किल ही हो चुकी थी, लेकिन अब तो एक दफे दिल खोल के लड़ूँगा। लेकिन जरा और ठहरना चाहिए, देखें वह अपनी दोनों बातों का सबूत क्या पेश करता है। नाहरसिंह कौन है? सबूत लेकर आगे बढ़े तो देखें उसकी सूरत कैसी है?

राजा इन सब बातों को सोचता ही रहा, उधर बीरसिंह की बात समाप्त होते ही नाहरसिंह जिसका नाम अब हम बिजयसिंह लिखेंगे अपनी कुर्सी से उठा और वही चीठी जो उसने रामदास की कमर से पाई थी, खड़गसिंह के हाथ में यह कह कर दे दी कि 'एक सबूत तो यह है'।

खड़गसिंह ने उस चिट्ठी को खड़े होकर जोर से सभों को सुना कर पढ़ा और चिट्ठी वाला हाथ ऊँचा करके कहा, "एक बात का सबूत तो बहुत पक्का मिल गया, इस चिट्ठी पर राजा के दस्तखत के सिवाय उसकी मुहर भी है जिससे वह किसी तरह इन्कार नहीं कर सकता है।" चीठी को सुनते ही चारों तरफ से आवाज आने लगी, "लानत है ऐसे राजा पर। लानत है ऐसे राजा पर!!

खड़गसिंह अपनी कुर्सी पर बैठे ही थे कि बाबाजी उठ खड़े हुए, मुँह से नकाब हटा कर सिंहासन के पास चले गए, और जोर से बोले-"दूसरी बात का सबूत मैं हूँ! (सभा की तरफ देख कर) राजा तो मुझे देखते ही पहचान गया होगा कि मैं फलाना हूँ मगर आप लोग यह सुन कर घबड़ा जायेंगे कि बीरसिंह का बाप करनसिंह जिसे राजा ने जहर दिया था और जिसका किस्सा अभी बीरसिंह आप लोगों को सुना चुका है मैं ही हूं। मेरी जान बचाने वाले का भाई भी इस शहर में मौजूद है, हाँ यदि राजा का जोश कोई रोक सके तो मैं आप लोगों को अपना विचित्र हाल सुनाऊँ, मगर ऐसी आशा नहीं है। बेईमान राजा की जल्दबाजी आप लोगों को मेरा किस्सा सुनने न देगी। देखिए, देखिए, वह बेईमान कुर्सी से उठ कर मुझ पर वार किया चाहता है! नमकहराम और विश्वासघाती को अब भी शर्म नहीं मालूम होती और वह...!!"

बाबाजी की बातें क्योंकर पूरी हो सकती थीं! बेईमान राजा का दिल उसके काबू में न था और न वह यही चाहता था कि बाबाजी (करनसिंह) यहाँ रहें और उनकी बातें कोई सुने! वह बहुत कम देर तक बेखुद रहने बाद एकदम चीख उठा और नयाम (म्यान) से तलवार खींच कर अपने आदमियों को यह कहता