पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/७८

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सरूप॰: उसने वहाँ एक सिंहासन भेजने के वास्ते भी कहा है। शायद पदवी देने के बाद आप उस पर बैठाये जायेंगे।

राजा: हाँ, उन सब चीजों का जाना तो बहुत ही जरूरी है क्योंकि इस बात का निश्चय कोई भी नहीं कर सकता कि कल क्या होगा और उसकी तरफ से क्या-क्या रंग रचे जायेंगे, मगर इतना खूब समझे रखना कि करनसिंह उन शैतानों से नावाकिफ नहीं है और ऐसा कमजोर भोला या बुजदिल भी नहीं है कि जिसका जी चाहे यकायकी धोखा दे जाय या खम ठोक कर मुकाबला करके अपना काम निकाल ले!!


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रात पहर-भर जा चुकी है। खड़गसिंह अपने मकान में बैठे इस बात पर विचार कर रहे हैं कि कल दर्बार में क्या-क्या किया जाएगा। यहाँ के दस-बीस सरदारों के अतिरिक्त खड़गसिंह के पास ही नाहरसिंह, बीरसिंह और बाबू साहब भी बैठे हैं।

खड़ग॰: बस यही राय ठीक है। दर्बार में अगर राजा के आदमियों से हमारे खैरखाह सरदार लोग गिनती में कम भी रहेंगे तो कोई हर्ज नहीं।

नाहर॰: जिस समय गरज कर मैं अपना नाम कहूँगा, राजा की आधी जान तो उसी समय निकल जायगी, फिर कसूरवार आदमी का हौसला ही कितना बड़ा? उसकी आधी हिम्मत तो उसी समय जाती रहती है जब उसके दोष उसे याद दिलाये जाते हैं।

एक सरदार: हम लोगों ने भी यही सोच रक्खा है कि या तो अपने को हमेशा के लिए उस दुष्ट राजा की ताबेदारी से छुड़ायेंगे या फिर लड़कर जान ही दे देंगे।

नाहरन: ईश्वर चाहे तो ऐसी नौबत नहीं आवेगी और सहज ही में सब काम हो जाएगा। राजा की जान लेना, यह तो कोई बड़ी बात नहीं, अगर मैं चाहता तो आज तक कभी का उसे यमलोक पहुँचा दिया होता, मगर मैं आज का-सा समय ढूँढ़ रहा था और चाहता था कि वह तभी मारा जाय जब उसकी हरमजदगी लोगों पर साबित हो जाय और लोग भी समझ जाएँ कि बुरे कामों का फल ऐसा ही होता है।