है जिसमें कुमेटी हो रही है, अगर आप सौ आदमी मेरे साथ दें तो मैं अभी वहाँ जाकर दुश्मनों को गिरफ्तार कर लूँ।
राजा: पागल भया है! रिआया के दिल में जो कुछ थोड़ा-बहुत खौफ बना है, वह भी जाता रहेगा। इसी समय शहर में बलवा हो जायगा और फिर कुछ करते-धरते न बन पड़ेगा। पहिले अपना पैर मजबूत कर लेना चाहिए। तुम तो चुपचाप बिना मुझसे कुछ कहे खड़गसिंह के पीछे-पीछे चले गए थे मगर मैंने खुद शम्भूदत्त को उसके पीछे भेजा है, देखें वह क्या खबर लाता है। वह आ ले तो कोई बात पक्की की जाय। अफसोस! मैं धोखे में आ गया!!
थोड़ी देर तक इन दोनों में बातचीत होती रही, सरूपसिंह के आधे घण्टे बाद शम्भूदत्त भी आ पहुँचा, वह भी बदहवास और परेशान था।
राजा: क्या खबर है?
शम्भू॰: खबर क्या पूरी चालबाजी खेली गई, खड़गसिंह ने धोखा दिया। बीरसिंह को तो अपने आदमियों के साथ अपने डेरे पर भेज दिया और आप सीधे उस मकान में पहुँचा जिसमें दुश्मनों की कुमेटी हुई थी, नाहरसिंह रास्ते में मिला उसे अपने साथ लेता गया।
राजा: खैर, इतना हाल तो हमें सरूपसिंह की जुबानी मालूम हो गया, इससे ज्यादे तुम क्या खबर लाए?
शम्भू॰: यह सरूपसिंह को कैसे मालूम हुआ?
राजा: सरूपसिंह खुद खड़गसिंह के पीछे गया था जिसकी मुझे खबर न थी।
शम्भू॰: अच्छा तो मैं एक खबर और भी लाया हूँ।
राजा: वह क्या?
शम्भू॰: बच्चनसिंह गिरफ्तार हो गया और हरिहरसिंह के हाथ में भी हथकड़ी पड़ गई।
राजा: (चौंक कर) क्या ऐसी बात है?
शम्भू॰: जी हाँ।
राजा: इतनी बड़ी ढिठाई किसने की?
शम्भू॰: सिवाय खड़गसिंह के इतनी बड़ी मजाल किस की थी?
राजा: अब वे दोनों कहाँ हैं?
शम्भू॰: खड़गसिंह के लश्कर में गए, उनके आदमी भी साथ थे, लश्कर के