राजा का दुश्मन है क्योंकि राजा के सामने उसने कहा था कि नाहरसिंह को हमने गिरफ्तार कर लिया और कैद करके अपने लश्कर में भेज दिया है मगर यहाँ मामला दूसरा ही नजर आता है, नाहरसिंह तो खुले मैदान घूम रहा है! मालूम होता है, खड़गसिंह ने उससे दोस्ती कर ली।
लेकिन नाहरसिंह का नाम सुनते ही सरूपसिंह इतना डरा कि वहाँ एक पल भी खड़ा न रह सका, भागता और हाँफता हुआ राजा के पास पहुँचा।
राजा: क्यों क्या खबर है? तुम इस तरह बदहवास क्यों चले आ रहे हो? कहाँ गये थे?
सरूप॰: खड़गसिंह के पीछे-पीछे गया था।
राजा: किस लिये?
सरूप॰: जिसमें मालूम करूं कि वह कहाँ जाता है और सच्चा है या झूठा।
राजा: तो फिर क्या देखा?
सरूप॰: वह बड़ा ही भारी बेईमान और झूठा है, उसने आपको पूरा धोखा दिया और नाहरसिंह के गिरफ्तार करने की बात भी बिल्कुल झूठ कही। नाहरसिंह खुले मैदान घूम रहा है बल्कि खड़गसिंह और उसमें दोस्ती मालूम पड़ती है। जिस मकान में दुश्मनों की कुमेटी होती है उसके पास ही खड़गसिंह नाहरसिंह से मिला जो कई आदमियों को साथ लिए वहाँ खड़ा था और बातचीत करता हुआ उसके साथ ही कुमेटी वाले मकान में चला गया।
राजा: तुमने कैसे जाना कि यह नाहरसिंह है?
सरूप॰: खड़गसिंह ने नाम लेकर पुकारा और दोनों में बातचीत हुई।
राजा: क्या बीरसिंह को लिये हुए खड़गसिंह वहाँ गया था?
सरूप॰: नहीं, उसने बीरसिंह को तो अपने आदमियों के साथ करके अपने डेरे पर भेज दिया और आप उस तरफ चला गया था।
राजा: तो बेईमान ने मुझे पूरा धोखा दिया!!
सरूप॰: बेशक।
राजा: अफसोस! यहाँ अच्छे मौके पर आया था, अगर मैं चाहता तो उसी वक्त काम तमाम कर देता और किसी को खबर भी न होती।
सरूप॰: इस समय खड़गसिंह नाहरसिंह को साथ लेकर उस मकान में गया