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 वालों को भी लग गई थी मगर वे लोग राजा के दुश्मन और बीरसिंह के पक्षपाती हो रहे थे, इसलिए नाहरसिंह के काम में विघ्न न पड़ा।

सुन्दरी जानती थी कि बीरसिंह उसका भाई है मगर राजा के जुल्म ने उसे हर तरह से मजबूर कर रखा था। बीरसिंह के कैद होने का हाल सुन कर सुन्दरी और भी बेचैन हुई मगर जब मैंने उसके छूटने का हाल कहा तो कुछ खुश हुई। मैं तहखाने में सुन्दरी से बातचीत कर ही रहा था कि राजा का मुसाहब बेईमान हरीसिंह वहाँ जा पहुँचा। उस समय सुन्दरी मेरी और अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो गई। आखिर हरीसिंह उसी समय मुझसे लड़ कर मारा गया और मैं उसकी लाश एक कम्बल में बाँध और लड़के को एक लौंडी की गोद में दे और उसे साथ ले तहखाने के बाहर निकला और मैदान में पहुँचा। वहाँ नाहरसिंह के दो आदमियों से मुलाकात हुई। मुझे नाहरसिंह तथा बीरसिंह से मिलने का बहुा शौक था और उन लोगों ने भी मुझे अपने साथ ले चलना मंजूर किया। आखिर हरीसिंह की लाश गाड़ दी गई, लौंडी वापस कर दी गई, और मैं लड़के को लेकर उन दो आदमियों के साथ नाहरसिंह की तरफ रवाना हुआ। उसी समय राजा के कई सवार भी वहाँ आ पहुँचे जो नाहरसिंह की खोज में घोड़ा फेंकते उसी तरफ जा रहे थे। हम लोगों को तो डर हुआ कि अब गिरफ्तार हो जायेंगे, मगर ईश्वर ने बचाया। एक पुल के नीचे छिप कर हम लोग बच गए और नाहरसिंह और बीरसिंह से मिलने की नौबत आई।

खड़ग॰: लड़का अब कहाँ है?

बाबू साहब: (नाहरसिंह की तरफ इशारा कर के) इनके आदमियों के सुपुर्द है।

खड़ग॰: तुम लोगों का हाल बड़ा ही दर्दनाक है, सुनने से कलेजा काँपता है। लेकिन अभी तक यह नहीं मालूम हुआ कि बेचारी तारा कहाँ है और उस पर क्या बीती?

नाहर॰: तारा का हाल मुझे मालूम है मगर मैंने अभी तक बीरसिंह से नहीं कहा।

एक सरदार: तो इस समय भी उसका कहना शायद आप मुनासिब न समझते हों।

नाहर॰: कहने में कोई हर्ज भी नहीं।