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से सुना तब मालूम हुआ कि अहिल्या या सुन्दरी ही वह बहिन है।

नाहरसिंह की जुबानी करनसिंह का किस्सा सुनकर सभी का जी बेचैन हो गया, आँखों में आँसू भर कर सभों ने लम्बी सांसें लीं और बेईमान करनसिंह राठू को गालियाँ देने लगे। थोड़ी देर तक सभों के चेहरे पर उदासी छाई रही मगर फिर क्रोध ने सभों का चेहरा लाल कर दिया और सभों ने दांत पीस कर कहा कि हम लोग ऐसे नालायक राजा की ताबेदारी नहीं कर सकते, हम लोग अपने हाथों से राजा को सजा देंगे और असली राजा करनसिंह के लड़के विजयसिंह (नाहरसिंह) को यहाँ की गद्दी पर बैठावेंगे, हम लोग चन्दा करके रुपये बटोरेंगे और फौज तैयार करके विजयसिंह और बीरसिंह को सर्दार बनावेंगे इत्यादि-इत्यादि।

जोश में आकर बहुत-सी बातें सरदारों ने कहीं और इसी समय खड़गसिंह में भी, अपनी फौज के सहित, जो नेपाल से साथ लाए थे, बीरसिंह और नाहरसिंह की मदद करना कबूल किया।

नाहर॰: मेरी बहिन सुन्दरी का हाल थोड़ा-सा और बाकी है जिसे आप चाहें तो सुन सकते हैं, यह हाल मुझे इनकी (अपने बगल में बैठे हुए साथी की तरफ इशारा करके) जुबानी मालूम हुआ है।

सरदार: हाँ हाँ, जरूर सुनेंगे, ये कौन हैं?

नाहर॰: यह अपना हाल खुद आप लोगों से बयान करेंगे।

खड़ग॰: मगर इनको चाहिए कि अपने चेहरे से नकाब हटा दें।

नाहरसिंह के ये साथी महाशय जो उनके बगल में बैठे हुए थे वे ही बाबू साहब थे जो गोद में एक लड़के को लेकर सुन्दरी से मिलने के लिए किले के अन्दर तहखाने में गए थे। इन्हें पाठक अभी भूले न होंगे। खड़गसिंह के कहते ही बाबू साहब ने "कोई हर्ज नहीं" कहकर अपने चेहरे से नकाब हटा दी और बेचारी सुन्दरी का बाकी किस्सा कहने लगे। इन्हें इस शहर में कोई भी पहिचानता नहीं था।

बाबू साहब: सुन्दरी अहिल्या के नाम से बहुत दिनों तक इस नालायक राजा के यहाँ रही। राजा की पाप-भरी आँखों का अन्दाज रानी को मालूम हो गया और उसने चुपके-से सुन्दरी को अपने नैहर भेज कर बाप को कहला भेजा कि उसकी शादी करा दी जाय। सुन्दरी की शादी मेरे साथ की गई और