नाहर॰: जी हाँ, उसके जीते रहने का एक सबूत तो मेरे पास इसी समय मौजूद है।
खड़ग॰: वह क्या?
नाहरसिंह ने एक पत्र कमर से निकाल कर खड़गसिंह के हाथ में दिया और पढ़ने के लिए कहा। यह वही चिट्ठी थी जो नदी में तैरते हुए रामदास को गिरफ्तार करने बाद उसकी कमर से नाहरसिंह ने पाई थी। इसे पढ़ते ही गुस्से से खडगसिंह की आंखें लाल हो गयीं।
खड़ग॰: बेशक, यह कागज राजा के हाथ का लिखा हुआ है, फिर उसकी मोहर भी मौजूद है, इससे बढ़कर और किसी सबूत की हमें जरूरत नहीं, अब सूरजसिंह का पता न भी लगे तो कोई हर्ज नहीं। (अनिरुद्धसिंह के हाथ में चीठी देकर) लो पढ़ो और बाकी सभी को भी पढ़ने को दो।
एकाएकी वह चीठी सभों के हाथ में गई और सभी ने पढ़ कर इस बात पर अपनी प्रसन्नता प्रकट की कि बीरसिंह निर्दोष निकला।
अनिरुद्ध: (खड़गसिंह से) अब आपको मालूम हो गया कि हम लोगों की जो दरखास्त नेपाल गई थी वह व्यर्थ न थी।
खड़ग॰: बेशक, (नाहरसिंह की तरफ देख कर) हाँ, आपने कहा था कि बीरसिंह का असल हाल आप लोग नहीं जानते। वह कौन-सा हाल है, क्या आप कह सकते हैं?
नाहर॰: हाँ मैं कह सकता हूं यदि आप लोग दिल लगा कर सुनें।
खड़ग॰: जरूर सुनेंगे।
नाहरसिंह ने करनसिंह और करनसिंह राठू का हाल और अपने बचने का सबब जो बीरसिंह से कहा था, इस जगह खड़गसिंह और सब सर्दारों के सामने कह सुनाया और इसके बाद बीरसिंह को कैद से छुड़ाने का हाल और अपनी बहिन सुन्दरी का भी वह पूरा हाल कहा जो तारा ने बाबाजी से बयान किया था। सुन्दरी का हाल बहुत-कुछ नाहरसिंह को पहिले से ही मालूम था, बाकी हाल जो तारा ने बीरसिंह से कहा था वह बीरसिंह ने अपने बड़े भाई नाहरसिंह को सुनाया था। बीरसिंह यह नहीं जानता था कि उसकी स्त्री तारा ने जिस अहिल्या का हाल उससे कहा था वह उसकी बहिन सुन्दरी ही थी। जब बीरसिंह और नाहरसिंह में मुलाकात हुई और अपनी बहिन सुन्दरी का नाम नाहरसिंह