खड़ग॰: खूनी के गिरफ्तार होने की मैं आपको बधाई देता हूँ। मैंने अच्छी तरह तहकीकात किया और निश्चय कर लिया कि बीरसिंह बड़ा ही शैतान और निमकहराम है। मैं अपने हाथ से इसका सिर काटूँगा। हाँ, मैं एक बात की और मुबारकबाद देता हूँ।
राजा: वह क्या?
खड़ग॰: आपके भारी दुश्मन नाहरसिंह को भी इस समय मैंने गिरफ्तार कर लिया!
राजा: (खुश होकर) वाह वाह, यह बड़ा काम हुआ! इसके लिए मैं जन्मभर आपका अहसान मानूँगा, वह कहाँ है?
खड़ग॰: सिपाहियों के पहरे में अपने लश्कर भेज दिया है। मैं मुनासिब समझता हूँ कि बीरसिंह को भी आप मेरे हवाले कीजिए और अपने आदमियों को हुक्म दीजिए कि इसे उठा कर मेरे डेरे में पहुँचा आवें। कल मैं एक दरबार करूँगा जिसमें यहाँ की कुल रिआया को हाजिर होने का हुक्म होगा। उसी में महाराज नेपाल की तरफ से आपको एक पदवी दी जाएगी और बिना कुछ ज्यादे पूछताछ किए इन दोनों को मैं अपने हाथ से मारूँगा। इसके सिवाय आपके दो-चार दुश्मन और भी हैं उन्हें भी मैं उसी समय फाँसी का हुक्म दूँगा।
राजा: यह आपको कैसे मालूम हुआ कि मेरे और भी दुश्मन हैं?
खड़ग॰: महाराज नेपाल ने जब मुझको इधर रवाना किया तो ताकीद कर दी थी कि करन सिंह की मदद करना और खोज-खोज कर उनके दुश्मनों को मारना। हरिपुर की रिआया बड़ी बेईमान और चालबाज है, उन लोगों को चिढ़ाने के लिए मेरी तरफ से करनसिंह को यह पत्र और अधिराज की पदवी देना। उसी हुक्म के मुताबिक मैंने यहाँ पहुँच कर यहाँ के जमींदारों और सरदारों से मेल पैदा किया और उनकी गुप्त कुमेटी में पहुँचा जो आपके विपक्ष में हुआ करती है, बस फिर आपके दुश्मनों का पता लगाना क्या कठिन रह गया!
राजा: (हँस कर)आपने मेरे ऊपर बड़ी मेहरबानी की, मैं किसी तरह आपके हुक्म के खिलाफ नहीं कर सकता, आप मुझे अपना ताबेदार ही समझिए। क्या आप बता सकते हैं कि मेरे वे दुश्मन कौन हैं?
खड़ग॰: इस समय मैं नाम न बताऊँगा, कल दर्बार में आपके सामने ही