पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/६२

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तारा: राजा ने कहा, "सुन्दरी, अगर तू मेरी बात न मानेगी तो पछताएगी। मैं जबर्दस्ती तुझे अपने कब्जे में करके अपनी ख्वाहिश पूरी कर सकता हूँ, मगर मैं चाहता हूँ कि एक दिन के लिए क्या हमेशे के लिए तू मेरी हो जा। अगर तेरी इच्छा है तो तेरे लिए रानी को भी मार डालने को मैं तैयार हूँ और तुझे अपनी रानी बना सकता हूँ!" इसके जवाब में सुन्दरी ने कहा, "अरे दुष्ट, तू बेहूदी बातें क्यों बकता है, अगर तू साक्षात इन्द्र भी बन के आवे तो मेरे दिल को नहीं फेर सकता!!"

साधु: शाबाश, अच्छा तब क्या हुआ?

तारा: राजा ने मेरे पिता की तरफ कुछ इशारा किया, उसने लड़की को जिसे वह गोद में लिए हुए था, चादर से बाँध खूटों के साथ उलटा लटका दिया और खंजर निकाल सामने जा खड़ा हुआ। लड़की बेचारी चिल्लाने लगी और सून्दरी की आँखों से भी आँसू की धारा वह चली। राजा ने फिर पुकार कर कहा, 'सुन्दरी, अब भी मान जा! नहीं तो तेरी इसी लड़की के खून से तुझे नहलाऊंगा!!"

"हाय, क्या मैं अपने पति के साथ दगा करूँ और उसकी होकर दूसरे की बनूँ? यह कभी नहीं हो सकता!!"

राजा ने हरीसिंह और मेरे पिता की तरफ कुछ इशारा किया, हरीसिंह ने एक कटोरा लड़की के नीचे रख दिया, मेरे पिता ने खंजर से लड़की का काम तमाम करना चाहा मगर न-मालूम कहाँ से उसके दिल में दया का संचार हुआ कि खंजर उसके हाथ से गिर पड़ा। राजा को उसकी यह अवस्था देख क्रोध चढ़ आया, तलवार खैंच कर मेरे पिता के पास जा पहुँचा और बोला, "हरामजादे! क्या मेरी बात तू नहीं सुनता! खबरदार, होशियार हो जा, इस लड़की का खून इस कटोरे में भर कर मुझे दे, मैं जबर्दस्ती हरामजादी को पिलाऊँगा!!"

लाचार मेरे बाप ने फिर खंजर उठा लिया और उसका दस्ता (कब्जा) इस जोर से बेचारी चिल्लाती हुई लड़की के सर में मारा कि सर फूट की तरह फट गया और खून का तरारा बहने लगा। यह हाल देख बेचारी सुन्दरी चिल्लाई और "हाय" करके बेहोश हो गई। मेरे भी हवास जाते रहे और मैं भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। घण्टे-भर के बाद जब मुझे होश आया, मैं उठी और उसी सूराख की राह झाँक कर देखने लगी मगर इस वक्त दूसरा ही समाँ नजर पड़ा।