तलवार उठा ली और एक ही बार में हरीसिंह का सिर काट कलेजा ठंढा किया।
बाबू साहब: हाय, तुमने यह क्या किया?
लौंडी: इस हरामजादे का मारा ही जाना बेहतर था, नहीं तो यह बड़ा फसाद मचाता!!
बाबू साहब: खैर, जो हुआ, अब मुनासिब है कि हम इसे उठा कर बाहर ले जावें और किसी जगह गाड़ दें कि किसी को पता न लगे।
बाबू साहब पलट कर सुन्दरी के पास आए और उसे समझा-बुझा कर बाहर जाने की इजाजत ली। एक लौंडी ने लड़के को गोद में लिया, बाबू साहब ने उसी जगह से एक कम्बल लेकर हरीसिंह की लाश बाँध पीठ पर लादी और जिस तरह से इस तहखाने में आये थे उसी तरह बाहर की तरफ रवाना हुए। जब उस खिड़की तक पहुंचे जिसे रामदीन ने खोला था, तो भीतर से कुंडा खटखटाया। रामदीन बाहर मौजूद था, उसने झट दर्वाजा खोल दिया और ये दोनों बाहर निकल गये।
रामदीन बाबू साहब की पीठ पर गट्ठर देख चौंका और बोला, "आप यह क्या गजब करते हैं! मालूम होता है, आप सुन्दरी को लिये जाते हैं! नहीं, ऐसा न होगा, हम लोग मुफ्त में फाँसी पावेंगे! इतना ही बहुत है कि मैं आपको सुन्दरी के पास जाने देता हूँ!!"
बाबू साहब ने गठरी खोलकर हरीसिंह की लाश दिखा दी और कहा: रामदीन, तुम ऐसा न समझो कि हम तुम्हारे ऊपर किसी तरह की आफत लावेंगे। यह कोई दूसरा ही आदमी है जो उस समय सुन्दरी के पास आ पहुँचा जिस समय मैं वहाँ पर मौजूद था, लाचार यह समझ कर इसे मारना ही पड़ा कि मेरा आना-जाना किसी को मालूम न हो और तुम लोगों पर आफत न आवे।
लौंडी: अजी यह वही हरामजादा हरीसिंह है जिसने मुद्दत से हम लोगों को तंग कर रक्खा था!
रामदीन: हाँ, अगर यह ऐसे समय में सुन्दरी के पास पहुंच गया तो इसका मारा जाना ही बेहतर था मगर इसे किसी ऐसी जगह गाड़ना चाहिये कि पता न लगे।