सुन्दरी का चेहरा बदल गया और खुशी की निशानी उसके गालों पर दौड़ आई। उसने चौंककर पूछा, "क्या तुम सच कह रहे हो?"
बाबू साहब: (सुन्दरी के सिर पर हाथ रख के) तुम्हारी कसम सच कहता हूँ।
एक लौंडी: मालूम होता है कि कोई आ रहा है।
सुन्दरी: (लड़के को लौंड़ी के हवाले करके) हाय, यह क्या गजब हुआ! क्या किस्मत अब भी आराम न लेने देगी?
इतने ही में सामने का दर्वाजा खुला और हाथ में नंगी तलवार लिये हरीसिंह आता हुआ दिखाई दिया, जिसे देखते ही बेचारी सुन्दरी और कुल लौडियाँ काँपने लगीं। बाबू साहब के चेहरे पर भी एक दफे तो उदासी आई मगर साथ ही वह निशानी पलट गई और होठों पर मुसकुराहट मालूम होने लगी। हरीसिंह मसहरी के पास आया और बाबू साहब को देखकर ताज्जुब से बोला, तू कौन है?
बाबू साहब: तें मेरा नाम पूछ कर क्या करेगा?
हरीसिंह: तू यहाँ क्यों आया है? (लौंडियों की तरफ देख कर) आज तुम सभों की मक्कारी खुल गई!!
बाबू साहब: अबे तू मेरे सामने हो और मुझसे बोल! औरतों को क्या धमकाता है?
हरीसिंह: तुझसे मैं बातें नहीं किया चाहता, तुझे तो गिरफ्तार कर के सीधे महाराज के पास ले जाऊँगा, वहीं जो कुछ होगा देखा जाएगा।
बाबू साहब: मैं तुझे और तेरे महाराज को तिनके के बराबर भी नही समझता, तेरी क्या मजाल कि मुझे गिरफ्तार करे!!
इतना सुनना था कि हरीसिंह गुस्से से काँप उठा। बाबू साहब के पास आकर उसने तलवार का एक वार किया। बाबू साहब ने फुर्ती से उठकर उसका हाथ खाली दिया और घूम कर उसकी कलाई पकड़ ली तथा इस जोर से झटका दिया कि तलवार उसके हाथ से दूर जा गिरी। अब दोनों में कुश्ती होने लगी। थोड़ी ही देर में बाबू साहब ने उसे उठा कर दे मारा। इत्तिफाक से हरीसिंह का सिर पत्थर की चौखट पर इस जोर से जाकर लगा कि फट कर खून का तरारा बहने लगा। साथ ही इसके एक लौंडी ने लपक कर हरीसिंह के हाथ की गिरी हुई