पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/४२

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करती है और जानती है कि वह सिवाय राजा के और किसी को दुःख देने वाला नहीं ।

औरत : सुना तो मैंने भी ऐसा ही है । अब देखें वह बीरसिंह के साथ क्या नेकी करता है और राजा का भण्डा किस तरह फूटता है । मुझे वर्ष-भर इस तहत खाने में पड़े हो गये मगर मैंने बीरसिंह और तारा का मुँह नहीं देखा, यों तो राजा के डर से लड़कपन ही से आज तक मैं अपने को छिपाती चली आई और बीरसिंह के सामने क्या किसी और के सामने भी न कहा कि मैं फलानी हूँ या मेरा नाम सुंदरी है, मगर साल-भर की तकलीफ ने ...(रो कर) हाय ! न-मालूम मेरी मौत कहाँ छिपी हुई हैं !!

बाबू साहब : (उस खून से भरे हुए कटोरे की तरफ देखकर) हाँ, यह खून-भरा कटोरा कहता है कि मैं किसी के खून से भरा हुआ कटोरा पीऊँगा !

सुन्दरी : (लड़के को गले लगाकर) हाय, हम लोगों की खराबी के साथ इस बच्चे की भी खराबी हो रही है !!

बाबू साहब : ईश्वर चाहता है तो इसी सप्ताह में लोगों को मालूम हो जावेगा कि तुम कुंआरी नहीं हो और यह बच्चा भी तुम्हारा ही है ।

सुन्दरी : परमेश्वर करे, ऐसा ही हो ! हाँ उन पंचों का क्या हाल है ?

बाबू साहब : पंचों में जोश बढ़ता ही जाता है, अब वे लोग बीरसिंह की तरफदारी पर पूरी मुस्तैदी दिखा रहे हैं ।

सुन्दरी : नाहरसिंह का कुछ और भी हाल मालूम हुआ है ?

बाबू साहब : और तो कुछ मालूम नहीं हुआ मगर एक बात नई जरूर सुनने में आई है ।

सुन्दरी : वह क्या ?

बाबू साहब : तारा के मारने के लिए उसका बाप सुजनसिंह मजबूर किया गया था ।

सुन्दरी : (लम्बी साँस लेकर) हाय, इसी कम्बख्त ने तो मेरे बड़े भाई बिजयसिंह को मारा है !

बाबू साहब : मैं एक बात तुम्हारे कान में कहा चाहता हूँ ।

सुन्दरी : कहो ।

बाबू साहब ने झुककर उसके कान में कोई बात कही जिसके सुनते ही