पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/३७

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नीचे ले जाकर सुस्ता लेता है और तब न बन्द होने वाली बदली की तरफ कोई ध्यान न देकर पुन: चल पड़ता है ।

यह आदमी जब किले के मैदान में पहुँचा तो बाएँ तरफ मुड़ा जिधर एक ऊँचा शिवालय था । यह बेखौफ उस शिवालय में घुस गया और कुछ देर सभामण्डप में सुस्ताने का इरादा किया मगर उसी समय वह लड़का रोने और चिल्लाने लगा जिसकी आवाज सुनकर वहाँ का पुजारी उठा और बाहर निकल कर उस आदमी के सामने खड़ा होकर बोला, "कौन है, बाबू साहब ?"

बाबू साहब : हाँ ।

पुजारी : बहुत अच्छा किया जो आप आ गए । चाहे यह समय कैसा ही टेढ़ा क्यों न हो मगर आपके लिए बहुत अच्छा मौका है ।

बाबू साहब : (लड़के को चुप कराके) केवल इस लड़के की तकलीफ का ख्याल है ।

पुजारी : कोई हर्ज नहीं, अब आप ठिकाने पहुँच गए । आइये हमारे साथ चलिये ।

उस शिवालय की दीवार किले की दीवार से मिली हुई थी और यह किला भी नाम ही को किला था, असल में तो इसे एक भारी इमारत कहना चाहिये, मगर दीवारें इसकी बहुत मजबूत और चौड़ी थीं । इसमें छोटे-छोटे कई तहखाने ने थे । यहाँ का राजा करनसिंह राठू बड़ा ही सूम और जालिम आदमी था, खजाना जमा करने और इमारत बनाने का इसे हद से ज्यादा शौक था । खर्च के डर से वह थोड़ी ही फौज से अपना काम चलाता और महाराज नेपाल के भरोसे किसी को कुछ नहीं समझता था, हाँ, नाहरसिंह ने इसे तंग कर रक्खा था जिसके सबब से इसके खजाने में बहुत-कुछ कमी हो जाया करती थी ।

वह पुजारी पानी बरसते ही में कम्बल ओढ़ कर बाबू साहब को साथ लिए किले के पिछवाड़े वाले चोरदर्वाजे पर पहुँचा और दो-तीन दफे कुंडी खटखटाई । एक आदमी ने भीतर से किवाड़ खोल दिया और ये दोनों अन्दर घुसे । भीतर से दर्वाजा खोलने वाला एक बुड्ढा चौकीदार था जिसने इन दोनों को भीतर लेकर फिर दर्वाजा बन्द कर दिया । पुजारी ने बाबू साहब से कहा, "अब आप आगे जाइये और जल्द लौट कर आइये, मैं जाता हूँ ।"

बाबू साहब ने छाता उसी जगह रख दिया क्योंकि उसकी अब यहाँ कुछ