तुम्हारे छुड़ाने के बन्दोबस्त में लग गया ।
बीर० : उसका नाम क्या है ?
नाहर० : सुंदरी ।
बीर० : तो आपको उम्मीद है कि उसका पता जल्द लग जाएगा ?
नाहर० : अवश्य ।
बीर० : अच्छा, अब मुझे एक बात और पूछना है ।
नाहर० : वह क्या ?
बीर० : आप हम लोगों पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रहे हैं और हम लोगों के सबब राजा के दुश्मन क्यों बन बैठे हैं ?
नाहर० : (कुछ सोचकर) खैर, इस भेद को भी छिपाए रहना अब मुनासिब नहीं है । उठो, मैं तुम्हें अपने गले लगाऊँगा तो कहूँ । (बीरसिंह को गले गला कर) तुम्हारा बड़ा भाई मैं ही हूँ जिसे राठू ने जख्मी करके कुएं में डाल दिया था । ईश्वर ने मेरी जान बचाई और एक सौदागर के काफिले को वहाँ पहुँचाया जिसने मुझे कुएं से निकाला । असल में मेरा नाम विजयसिंह है । राजा से बदला लेने के लिए इस ढंग से रहता हूं । मैं डाकू नहीं हूँ और सिवाय राजा के किसी को दुःख भी नहीं देता, केवल उसी की दौलत लूट कर अपना गुजारा करता हूँ ।
बीरसिंह को भाई के मिलने की खुशी हद्द से ज्यादा हुई और घड़ी-घड़ी उठ कर कई दफे उन्हें गले लगाया । थोड़ी देर और बातचीत करने के बाद वे दोनों उठ कर खंडहर में चले गए और अब क्या करना चाहिए यह सोचने लगे ।
घटाटोप अंधेरी छाई हुई है, रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, बादल गरज रहा है, बिजली चमक रही है, मूसलाधार पानी बरस रहा है, सड़क पर बित्ता-बित्ता-भर पानी चढ़ गया है, राह में कोई मुसाफिर चलता हुआ नहीं दिखाई देता। ऐसे समय में एक आदमी अपनी गोद में तीन वर्ष का लड़का लिए और उसे कपड़े से छिपाए, छाती से लगाए, मोमजामे के छाते से आड़ किये किले की तरफ लपका चला जा रहा है । जब कहीं रास्ते में आड़ की जगह मिल जाती है अपने को उसके