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यकायक बीरसिंह ने चौंक कर नाहरसिंह से पूछा––

बीर॰ : खैर, जो भी हो, आप उस करनसिंह का किस्सा तो अब अवश्य कहें जिसके लिए रात वादा किया था।

नाहर॰ : हाँ, सुनो, मैं कहता हूँ, क्योंकि सबके पहले उस किस्से का कहना ही मुनासिब समझता हूँ।

करनसिंह का किस्सा

पटने का रहने वाला एक छोटा-सा जमींदार, जिसका नाम करनसिंह था, थोड़ी-सी जमींदारी में खुशी के साथ अपनी जिंदगी बिताता और बाल-बच्चों में रह कर सुख भोगता था। उसके दो लड़के और एक लड़की थी। हम उस समय का हाल कहते हैं जब उसके बड़े लड़के की उम्र बारह वर्ष की थी। इत्तिफाक से दो साल की बरसात बहुत खराब बीती और करनसिंह के जमींदारी की पैदावार बिल्कुल ही मारी गई। राजा की मालगुजारी सिर पर चढ़ गई जिसके अदा होने की सूरत न बन पड़ी। वहाँ का राजा बहुत ही संगदिल और जालिम था। उसने मालगुजारी में से एक कौड़ी भी माफ न की और न अदा करने के लिए कुछ समय ही दिया। करनसिंह की बिल्कुल जायदाद जब्त कर ली जिससे वह बेचारा हर तरह से तबाह और बर्बाद हो गया। करनसिंह का एक गुमाश्ता था जिसको लोग करनसिंह राठू या कभी-कभी सिर्फ राठू कह कर पुकारते थे। लाचार होकर करनसिंह ने स्त्री का जेवर बेच पाँच सौ रुपये का सामान किया। उसमें से तीन सौ अपनी स्त्री को देकर उसे करनसिंह राठू की हिफाजत में छोड़ा और दो सौ आप लेकर रोजगार की तलाश में पटने से बाहर निकला। उस समय नेपाल की गद्दी पर महाराज नारायणसिंह बिराज रहे थे जिनकी नेकनामी और रिआयापरवरी की धूम देशान्तर में फैली हुई थी। करनसिंह ने भी नेपाल ही का रास्ता लिया। थोड़े ही दिन में वहाँ पहुँच कर वह दर्बार में हाजिर हुआ और पूछने पर उसने अपना सच्चा-सच्चा हाल राजा से कह सुनाया। राजा को उसके हाल पर तरस आया और उसने करनसिंह को मजबूत, ताकतवर और बहादुर समझ कर फौज में भरती कर लिया। उन दिनों नेपाल की तराई में दो-तीन डाकुओं ने बहुत ही जोर पकड़ रखा था, करनसिंह ने स्वयं उनकी गिरफ्तारी के