बहाव की तरफ जा रही थी क्योंकि खेने वाले बहुत मजबूत और मुस्तैद आदमी थे । यकायक नाहरसिंह ने नाव रोक कर किनारे की तरफ ले चलने का हुक्म दिया । माझियों ने वैसा ही किया । किश्ती किनारे लगी और दोनों आदमी जमीन पर उतरे । नाहरसिंह ने एक माझी की कमर से तलवार लेकर बीरसिंह के हाथ में दी और कहा कि इसे तुम अपने पास रक्खो, शायद जरूरत पड़े । उसी समय नाहरसिंह की निगाह एक बहते हुए घड़े पर पड़ी जो बहाव की तरफ जा रहा था । वह एकटक उसी तरफ देखने लगा। घड़ा बहते-बहते रुका और किनारे की तरफ आता हुआ मालूम पड़ा । नाहरसिंह ने बीरसिंह की तरफ देखकर कहा-- "इस घड़े के नीचे कोई बला नजर आती है !"
बीर० : बेशक, मेरा ध्यान भी उसी तरफ है, क्या आप उसे गिरफ्तार करेंगे ?
नाहर० : अवश्य !
बीर० : कहिये तो मैं किश्ती पर सवार होकर जाऊं और उसे गिरफ्तार करूं ?
नाहर० : नहीं नहीं, वह किश्ती को अपनी तरफ आते देख निकल भागेगा, देखो, मैं जाता हूं ।
इतना कह कर नाहरसिंह ने कपड़े उतार दिए, केवल उस लंगोटे को पहरे रहा जो पहिले से उसकी कमर में था । एक छुरा कमर में लगाया और माझियों को इशारा कर जल में कूद पड़ा । दूसरे गोते में उस घड़े के पास जा पहुंचा, साथ ही मालूम हुआ कि जल में दो आदमी हाथाबांहीं कर रहे हैं । माझियों ने तेजी के साथ किश्ती उस जगह पहुंचाई और बात-की-बात में उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया जो सर पर घड़ा औंधे अपने को छिपाये हुए जल में बहा जा रहा था ।
सब लोग आदमी को किनारे लाये जहां नाहरसिंह ने अच्छी तरह पहिचान कर कहा, “अख्आह, कौन ! रामदास ! भला वे हरामजादे, खूब छिपा-छिपा फिरता था ! अब समझ ले कि तेरी मौत आ गई और तू नाहरसिंह डाकू के हाथ से किसी तरह नहीं बच सकता !!"
नाहरसिंह का नाम सुनते ही रामदास के तो होश उड़ गए, मगर नाहरसिंह ने उसे बात करने की भी फुरसत न दी और तुरन्त तलाशी लेना शुरू किया । मोमजामे में लपेटी हुई एक चीठी और खंजर उसकी कमर से निकला जिसे ले लेनेके बाद हाथ-पैर बाँध पर माझियों हुक्म दिया "इसे नाहरगढ मे ले