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चाहिए, नाम सुनने पर भी बीरसिंह की मुहब्बत उस पर उतनी ही रहा है या कुछ कम हो जाती है ।

बीर० : आपकी नेकी और अहसान की तारीफ मैं कहाँ तक करूं! आपने मेरे साथ वह बर्ताव किया है जो प्रेमी भाई भाई के साथ करता है, आशा है कि अब आप अपना नाम भी कह कर कृ र्य करेंगे ।

आदमी : (चेहरे पर नकाब डालकर) मेरा नाम नाहरसिंह है ।

बीर० : (चौंक कर) नाहरसिंह ! जो डाकू के नाम से मशहूर है !

नाहर० : हाँ ।

बीर० : (उसके साथियों की तरफ देख कर और उन्हें मजबूत और ताकत- वर समझ कर) मगर आपके चेहरे पर कोई भी निशानी ऐसी नहीं पाई जाती जो आपका डाकू पा जालिम होना सावित करे । मैं समझता हूँ कि शायद नाहरसिंह डाकू कोई दूसरा ही आदमी होगा ।

नाहर० : नहीं नहीं, वह मैं ही हूँ मगर सिवाय महाराज के और किसी के लिए मैं बुरा नहीं । महाराज ने तो मेरी गिरफ्तारी का हुक्म दिया था न ?

बीर० : ठीक है, मगर इस समय तो मैं ही आपके अधीन हूँ ।

नाहर० : ऐसा न समझो, अगर तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए कहीं जाते और मेरा सामना हो जाता तो भी मैं तुम से आज ही की तरह मिल बैठता । बीरसिंह, तुम यह नहीं जानते कि यह राजा कितना बड़ा शैतान और बदमाश है ! बेशक, तुम कहोगे कि उसने तुम्हारी परवरिश की और तुम्हें बेटे की तरह मान कर एक ऊंचा मर्तबा दे रक्खा है, मगर नहीं, उसने अपनी खुशी से तुम्हारे साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया बल्कि मजबूर होकर किया । मैं सच कहता हूँ कि वह तुम्हारा जानी दुश्मन है । इस समय शायद तुम मेरी बात न मानोगे मगर मैं विश्वास करता हूँ कि थोड़ी ही देर में तुम खुद कहोगे कि जो मैं कहता था, सब ठीक है ।

बीर० : (कुछ सोच कर) इसमें तो कोई शक नहीं कि राजाओं में जो-जो बातें होनी चाहिये वे उसमें नहीं हैं मगर इस बात का कोई सबूत अभी तक नहीं मिला कि उसने मेरे साथ जो कुछ नेकी की, लाचार होकर की ।

नाहर० : अफसोस कि तुम उसकी चालाकी को अभी तक नहीं समझे, यद्यपि कुँअर साहब की लाश की बात अभी बिल्कुल ही नई है !