पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/२३

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बेचारे बीरसिंह कैदखाने में पड़े सड़ रहे हैं । रात की बात ही निराली है, इस भयानक कैदखाने में दिन को भी अंधेरा ही रहता है । यह कैदखाना एक तहखाने के तौर पर बना हुआ है, जिसके चारों तरफ की दीवारें पक्की और मजबूत हैं । किले से एक मील की दूरी पर जो कैदखाना था और जिसमें दोषी कैद किए जाते थे उसी के बीचोंबीच यह तहखाना था जिसमें बीरसिंह कैद थे । लोगों में इसका नाम 'आफत का घर' मशहूर था । इसमें वे ही कैदी कैद किए जाते थे जो फाँसी देने के योग्य समझे जाते या बहुत ही कष्ट देकर मारने योग्य ठहराये जाते थे ।

इस कैदखाने के दर्वाजे पर पचास सिपाहियों का पहरा पड़ा करता था । नीचे उतरकर तहखाने में जाने के लिए पाँच मजबूत दर्वाजे थे और हर एक दर्वाजे में मजबूत ताला लगा रहता था । इस तहखाने में न-मालूम कितने कैदी सिसक-सिसक कर मर चुके थे । आज बेचारे बीरसिंह को भी हम इसी भयानक तहखाने में देखते हैं । इस समय इनकी अवस्था बहुत ही नाजुक हो रही है । अपनी बेकसूरी के साथ-ही-साथ बेचारी तारा की जुदाई का गम और उसके मिलने की नाउम्मीदी इन्हें मौत का पैगाम दे रही है । इसके अतिरिक्त न-मालूम और कैसे-कैसे खयालात इनके दिल में काँटे की तरह खटक रहे हैं । तहखाना बिलकुल अन्धकारमय है, हाथ को हाथ नहीं सूझता और यह भी नहीं मालूम होता कि दर्वाजा किस तरफ है और दीवार कहाँ है ? इस जगह कैद हुए इन्हें आज चौथा दिन है । इस बीच में केवल थोड़ा-सा सूखा चना खाने के लिए और गरम जल पीने के लिए इन्हें मिला था मगर बीरसिंह ने उसे छूआ तक नहीं और एक लम्बी साँस लेकर लौटा दिया था । इस समय गर्मी के मारे दुःखित हो तरह-तरह की बातों को सोचते हुए बेचारे बीरसिंह, जमीन पर पड़े, ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं । यह भी नहीं मालूम कि इस समय दिन है या रात ।

यकायक दीवार की तरफ कुछ खटके की आवाज हुई, यह चैतन्य होकर उठ बैठे और सोचने लगे कि शायद कोई सिपाही हमारे लिए अन्न या जल लेकर आता है--मगर नहीं, थोड़ी ही देर में कई दफे आवाज आने से इन्हें गुमान हुआ शायद कोई आदमी इस तहखाने की दीवार तोड़ रहा है या सींध लगा रहा है ।