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एक घूंसा उसके मुंह पर जमा कर फिर कहा, "जो कुछ मैंने पूछा है उसका जवाब जल्द दे, नहीं तो अभी गला दबा कर तुझे मार डालूंगा !" आखिर लाचार हो और अपनी मौत छाती पर सवार जान उसने जवाब दिया : "मैं बीरसिंह का नौकर हूं, मेरा नाम श्यामलाल है, मुझे मालिक ने अपनी मोहर लाने के लिए यहां भेजा था, सो लिए जाता हूं । मैंने कोई कसूर नहीं किया, मालूम नहीं आप मुझे क्यों ......!"

इससे ज्यादे वह कहने नहीं पाया था कि उस लांबे कद के आदमी ने एक घूंसा और उसके मुँह पर जमा कर कहा, "हरामजादे के बच्चे, अभी कहता है कि मैंने कोई कसूर नहीं किया ! मुझी से झूठ बोलता है ? जानता नहीं मैं कौन हूं ? ठीक है, तू क्योंकर जान सकता है कि मैं कौन हूं ? अगर जानता तो मुझसे झूठ कभी न बोलता । मैं बोली ही से तुझे पहिचान गया कि तू बीरसिंह का आदमी नहीं है बल्कि उस बेईमान राजा करनसिंह का नौकर है जो एक भारी जुल्म और अंधेर करने पर उतारू हुआ है । तेरा नाम बच्चनसिंह है । मैं तुझे इस झूठ बोलने की सजा देता और जान से मार डालता, मगर नहीं, तेरी जुबानी उस बेईमान राजा को एक संदेसा कहला भेजना है, इसलिए छोड़ देता हूं । सुन और ध्यान देकर सुन, मेरा ही नाम नाहरसिंह है, मेरे ही डर से तेरे राजा की जान सूखी जाती है, मेरे ही नाम से यह हरिपुर शहर कांप रहा है, और मुझी को गिरफ्तार करने के लिए तेरे बेईमान राजा ने बीरसिंह को हुक्म दिया था, लेकिन वह जाने भी न पाया था कि बेचारे को झूठा इलजाम लगाकर गिरफ्तार कर लिया ! ( मोहरका डिब्बा बच्चनसिंह के हाथ से छीन कर) राजा से कह दीजियो कि मोहर का डिब्बा नाहरसिंह ने छीन लिया, तू नाहरसिंह को गिरफ्तार करने के लिए वृथा ही फौज भेज रहा है, न-मालूम तेरी फौज कहां जाएगी और किस जगह ढूंढ़ेगी, वह तो हरदम इसी शहर में रहता है, देख सम्हल बैठ, अब तेरी मौत आ पहुंची, यह न समझियो कि कटोरा-भर खून का हाल नाहरसिंह को मालूम नहीं है ! !"

बच्चन० : कटोरा-भर खून कैसा ?

नाहर० : (एक मुक्का और जमाकर) ऐसा ! तुझे पूछने से मतलब !! जो मैं कहता हूं जाकर कह दे और यह भी कह दीजियो कि अगर बन पड़ा और फुरसत मिली तो आज के आठवें दिन सनीचर को तुझसे मिलूंगा । बस जा-- हां एक बात और याद आई, कह दीजियो कि जरा कुंअर साहब को अच्छी तरह