पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/१२

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बीरसिंह ने उस गुंजान और भयानक जगह पर पहुंच कर उस लाश को एक जगह रख दिया और वहां से लौट कर उस तरफ गया जिधर मालियों के रहने के लिए एक कच्चा मकान फूस की छावनी का बना हुआ था । अब बिजली चमकने और छोटी-छोटी बूंदें भी पड़ने लगीं ।

बीरसिंह एक माली की झोंपड़ी में पहुँचा । माली को गहरी नींद में पाया । एक तरफ कोने में दो-तीन कुदाल और फरसे पड़े हुए थे, बीरसिंह ने एक कुदाल उठा लिया और फिर उस जगह गया जहां लाश छोड़ आया था । इस समय तक वर्षा अच्छी तरह होने लगी थी और चारों तरफ अन्धकारमय हो रहा था । कभी-कभी बिजली चमकती थी तो जमीन दिखाई दे जाती, नहीं तो एक पैर भी आगे रखना मुश्किल था ।

बीरसिंह को उस लाशका पता लगाना कठिन हो गया जिसे उस जगह रख गया था । बह चाहता था कि उस लाश के पास पहुंच कर कुदाल से जमीन खोदे और जहां तक जल्द हो सके उसे जमीन में गाड़ दे, मगर न हो सका, क्योंकि इस अंधेरी रात में हजार ढूंढने और सर पटकने पर भी वह लाश न मिली । जब-जब बिजली चमकती, वह उस निशान को अच्छी तरह पहिचानता जिसके पास उस लाश को छोड़ गया था मगर ताज्जुब की बात थी कि लाश उसे दिखाई न पड़ी ।

पानी ज्यादा बरसने के कारण बीरसिंह को कष्ट उठाना पड़ा, एक तो तारा की फिक्र ने उसे बेकाम कर दिया था दूसरे कुंअर साहब की लाश न पाने से वह अपनी जिन्दगी से भी नाउम्मीद हो गया था और अपने को तारा का पता लगाने लायक नहीं समझता था । बेशक, उसे अपने मालिक महाराज और कुंअर साहब की बहुत मुहब्बत थी मगर इस समय वह यही चाहता था कि कुंअर साहब की लाश छिपा दी जाय और असल खूनी का पता लगाने के बाद ही यह भेद सभों पर खोला जाय । लेकिन यह न हो सका, क्योंकि कुंअर साहब की लाश जब तक वह कुदाल लेकर आवे इसी बीच में आश्चर्य रूप से गायब हो गई थी ।

बीरसिंह हैरान और परेशान उस लाश को चारों तरफ खोज रहा था, पानी से उसकी पोशाक बिल्कुल तर हो रही थी । यकायक बाग के फाटक की तरफ उसे कुछ रोशनी नजर आई और वह उसी तरफ देखने लगा । वह रोशनी भी उसी की तरफ आ रही थी । जब बाग के अन्दर पहुंची तो मालूम हुआ कि दो मशालों की रोशनी में कई आदमी मोमजामे का छाता लगाये और मशालों को भी छाते की