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मथुरा में चर्च के पास ही एक छोटा-सा, परन्तु साफ-सुथरा “गता है। उसके चारों ओर ज़रों से घिरी हुई ऊँनी, उराटों की बड़ी घनी इट्टी हैं। भीतर कुछ फलों के युः हैं। हरियाली अपनी शनी छाया में उस बैंगले को शराज करतो है। पात्र ही पीपल मा एक पका-सा वृक्ष है। उसके नीचे बैत की कुर्सी पर बैठे हुए मिस्टर नाम के सामने, एक टेबुख पर पुछ कागज बिखरे हैं। वह अपनी धुन में, का में व्यस्त हैं। बाथम ने एक भारतीय रमणों से अपना मल्ल कर लिया है। वह इतनी अल्पभाष और गम्भीर हैं कि पड़ोस के लोग बाथम को साधु साहम कहते हैं, जैससे आज तक किनी में झगड़ा नहीं हुआ, झौर में उसे किसी ने क्रोध करते देखा । वाहूर तो अवश्य योरोपीय ढंग से रहता है, गी भी केवल येस्त्र और वहार के सम्मन्य मे; परन्तु उसके घर के भीतर पूर्ण हिन्दू-भाभार है । इसी त मागरेट जसिफा ईसाई होते हुए भी भारतीय ग से रहती है। वाघम उससे प्रसन्न है; वह चाहता है कि गृहिणौन की जैसी शुन्दर योजना भार- तीय स्त्रियों को आठी है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। इतना आकर्पक, इतना माया- ममता स्त्री-यम-गुलभ गार्हस्थ्य-जीवन और किसी समाज में नहीं । कभी- कभी अपने इन विचारों के कारण उसे अपनै योरोपीय मित्रों के सामने बहुत सज्जित होना पड़ता है; परन्तु जरा यै विश्वास है । इसका पर्स के पादरी पर भी अनन्य प्रभाव है। पादरी जॉन उसके घर्ग-विश्वास का अन्यत्तम समर्पक है। पतिका को वह बुडा पायरी अपनी सहनी के समान प्यार करता है। अधिग घातौन और ततिको तीस की होगी । सत्तर यरस का चूड़ा पादरी इन दोनों ने देबयर अत्यन्त प्राप्त होता हैं । अभी दीपक नही जलाये गये थे 1 बड़ी टेकता हुआ बुट्टा जान आ पहुँषा । बाथम चढ़ खड़ा हुआ, हाथ मिलाकर बैठते हुए जॉन ने पूछा-मारगटैन कहाँ है ? तुम लोगों के साम ही प्रार्थना करने को मन यही इच्छा है। हाँ पिता, इम लोग भी साथ ही सगे--कहते हुए बाथम भीतर गया और

  • कास :