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पाठ ग म सका । दीपक जल जाने पर जय वह पाठशाता में बैठा, सब प्रात- प्रकाश ने सूर्य उसे बीहट्ट सगे । ब्याख्या अस्पष्ट हो गई । उह्मचारियों ने देखा गुरुजी दो शाम सा हो गया है ! | विजय घर लौट आया। मैमुनी रसोई बनाकर बैठी थी । हँसती हुई घण्ट्रो को भी उसने सारा ही आते देखा। अह हरी । और न जाने क्यों ने पूण- विषय मात्र, विदेश में एक विधवा तरुणी को लिये इस तरह धूमना गया ठीक है? मह वात बाज वय। पूछती हो यमुना ? घण्टी ! इसमें तुम्हारी क्या सम्मति है?—शान्त माघ से विबय में कहा ।। इसका विचार तो यमुना को स्वयं करना चाहिंए । मैं तो अजवासिनी है, देय मी यंत्र को सुनने से कभी भी नहीं जा सकता। यमुना व्यंग से मर्माहत होकर बोली--अच्छा भोजन कर लीजिए । विजय भोजन करने वैग; पर अचि थी । शीघ्र उड़ गया। वह लम्प के सामने वा बैठा । झामने ही दरी के कोने पर बैठी यमुना पान गाने गई । पान विजय के सामने रखकर चली गई, किन्तु विजण नै उरो भा भी नी, यह गुना में लौट आने पर देखा । इराने दृढ स्वर में पूछा-निजय गए, पान क्यों नहीं चामा आफ्ने ? अब पान न पाऊँगा, आज से छोड दिया। पान छोड़ने में नया सुविधा है ? मैं बहुत जल्द ईसाई होने वाला हूँ, उस समाज में इसका शत्रहार नहीं । मुझे पढ़े इम्मपूर्ण इर्म के समान दवाये हैं, अपनी आत्मा के विरूद्ध रहने । लिए मैं बाध्य किया जा रहा है। | आपके लिए वो फोई रोक-टोक नहीं, फिर फौ... | मह मैं जानता है कि कोई रॉकफ नही; पर मैं यह भी अनुभव करता है कि मैं कुछ विरुद्ध आचरण कर रहा है। इस विद्या का प्रश्न का हर है । मर्न उत्साहपूर्ण होकर न्र्तव्य नहीं करती । मह सव मेरे हिन्दु रहने के कारण हैं । स्वान्त्रता और हिन्दू धर्म–दोनों विरुद्धयाची घान्द हैं । पर ऐसी वादें तो अन्य धर्मानुयायी मनुष्यों के जीवन में भी आ सकती हैं। मय का काम सब मनुष्य नहीं कर सकते। | वो भी बहुत-सी बातें ऐसी हैं, जो हिन्दू-धर्म में रहकर नहीं की जा सकती, किन्तु मेरे लिए नितान्त आवश्यक हैं। जैसे ? सुमसे आई र सेना ! कंप