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तो फिर निम्न वमों ?-हते हुए घण्टो ने अल्हडपन से बिजम नी और फिशोरी ने कहा--विजर्म, तू भी चलेगा न ? यमुना और विषय फो पही झाँकी मिलती है, क्यों निजग जति ?-मात काटते हुए घण्टी ने कहा। | मैं तो जाऊँगा नहीं, नयोंकि छः बजे मुदौ एक मित्र से मिलने जाना है। परन्तु घण्टी, तुम तो हो वही नटखट ! -विजय ने कहा। मह जज है याबूजी ! यहाँ के पत्ते-प में प्रेम मरा है। बंसोवाले की थंडी अन भी सैया-कुंज में अची रात को बजती है। चिन्ता किस बात की ?--विजय के पास सरककर धीरे से हँसते हुए उस चंचल छोकरी ने कहा । घण्टी के कपोलो मैं हँसत्रै समय गढ़े पड़ जाते थे। गोली मतवाली आंखें गोपियों के छायाचित्र उतारती, और उभरती हुई वयच-सधि से उसकी पंपलता सदैब छेड़-छाड़ करती रहढी । बह इस क्षण के लिये भी स्थिर न रहती-भी अंगड़ाई लेती, तो कभी अपनी उँगलियाँ दटकातौ । आँखें छज्जा का अभिनर थरथैः जब पत्तों को आह छिप जातीं, सब भी भौहे थला फरतौं । तिस पर भी घण्टी एकः बाल- विधना है। विजय उराकै सामने अप्रतिम हो जाता, कोकि मह कमी-पभो स्वाभावि, निःसंकोच परिहारा यार दिया करती। यमुना को उसका पंग असह्य हो उठता; पर किशोरी को वह छेड़-छाड़ अच्छी लगती बढ़ी हँसमुख लड़की हैं 1-बहू बकर बात उड़ा दिया करती। किशोरी ने अपनी पादर से सी थी । चलने को प्रस्तुत यी । इष्टी ने इवे- उठने कहा—अच्छा तो लाज ललिता की ही विजय है, राधा सौटी जाती है ! -सवे-हेराते वह किशोरी के साथ घर से बाहर निकल गई। वर्षा बंद हो गई थी; पर बादल घिरे । राहत विजय उठा और यह भी नौकर को एयधान रह वैके लिए बहकर चला गया। यमुना के हुदर में भी निरुद्दिष्ट पथभाले चिन्ता गैः गादन मँडरा रहे थे। नह अपनी अतीत-चिन्ता में निमग्न हो गई। बीत जाने पर दुख्नदायी पटना मी सुन्दर और मूल्ययान हो जाती है। वह एमा वरि द्वारा बनकर मन-ही-मन अतीत का हिसाब लगाने लगी, स्मृढियाँ नाम बन गई। जल वेग से याने गा। परन्तु यमुना के मन में एक शिशु-सरोज नहाने सगा । बहू रो उठी। फई महीने बीत गये-- किशोरो, निरंजन और विजय थैठे हुए कुछ बातें कर ई पे । निरंजनदार

  1. राप्त । ७३