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देव का परिचय देते हुए वेदस्वरूप ने कहा-आपका ही शुभ नाम मंगलदेव है।इन्होंने ही इन देवी का यवनों के चंगुल से उद्धार किया है।–तारा ने नमस्ते किया, ब्रह्मचारी ने पहले हँसकर कहा--सो तो होना चाहिए, ऐसे ही नवयुवकों से भारतवर्ष को आशा हैं।इस सत्साहस के लिए मैं धन्यवाद देता हूँ। आप समाज में कब से प्रविष्ट हुए हैं?

अभी तो मैं सभ्यो में नही हूँ---मंगल ने कहा।

बहुत शीघ्र हो जाइए, बिना भित्ति के कोई घर नहीं टिकता और बिना नींद की कोई भित्ति नही। उसी प्रकार सद्विचार के बिना मनुष्य की स्थिति नहीं और धर्म संस्कार के बिना सद्विचार टिकाऊ नहीं होते। इसके सम्बन्ध में मैं विशेष रूप से फिर कहूँगा। आइए हम लोग सन्ध्या-वन्दन कर लें।

संध्या और प्रार्थना के समय मंगलदेव केवल चुपचाप बैठा रहा

थालियाँ परसी गई। भोजन करने के लिए लोग आसन पर बैठे। वेद-स्वरूप ने कहना आरम्भ किया-हमारों जाति में धर्म के प्रति इतनी उदासीनता का कारण हैं एक कल्पित ज्ञान, जो इस देश के प्रत्येक प्राणी के लिए सुलभ हो गया है। वस्तुतः उन्हें ज्ञानाभाव होता है और वे अपने साधारण नित्यकर्म से वंचित होकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति करने में भी असमर्थ होते हैं।

ज्ञानदत्त--इसीलिए आर्यो का कर्मवाद संसार के लिए विलक्षण कल्याण दायक है। ईश्वर के प्रति विश्वास करते हुए भी उसे स्वावलम्बन का पाठ पढ़ाता है।यह ऋषियों का दिव्य अनुसंधान है

ब्रह्मचारी ने कहा-तो अब क्या विलम्ब हैं,बातें भी चला करेंगी। मंगलदेव ने कहा--हाँ, हाँ, आरम्भ कीजिए।

बह्मचारी ने गंभीर स्वर से प्रणवाद किया और दन्त-अन्न का युध्द प्रारम्भ हुआ !

मंगलदेव ने कहा-परन्तु संसार की अभाव-आवश्यकताओं को देखकर यह कहना पड़ता है कि कर्मवाद का सृजन करके हिन्दू-जाति ने अपने लिए असन्तोष और दौड़-धूप,आशा और संकल्प को फन्दा बना लिया है।

कदापि नहीं, ऐसा समझना भ्रम है महाशयजी! मनुष्यों को पाप-पुण्य की सीमा में रखने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय जगत् को नहीं मिला।---सुभद्रा ने कहा।

श्रीमती!मैं पाप-पुण्य की परिभाषा नही समझता परन्तु यह कहूँगा कि मुसलमान-धर्म इस ओर बड़ा दृढ़ है। वह सम्पूर्ण निराशावादी होते हुए,भौतिक कुल शक्तियोंं पर, अविश्वास करते हुए,केवल ईश्वर की अनुकम्पा पर अपने को

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