जब आपको केवल पूछना ही हैं तो मैं क्यों बताऊँ ? जब आप जान जायेंगे कि वही हूँ, तो फिर आपको आने की कोई आवश्यकता ही न रह जायेगी।
मंगल ने सोचा, संसार किसनी शीघ्रता से मनुष्य को चतुर बना देता है।--अब तो पूछने का काम भी नहीं है।
क्यों?
आवश्यकता ने सब परदा खोल दिया, तुम मुसलमानी कदापि नहीं हो।
परन्तु अब मैं मुसलमान हूँ।
हाँ,यही तो एक भयानक बात है!
और यदि मैं न होऊँ?
तब की तो बात ही दूसरी है।
अच्छी तो मैं वही हूँ,जिसका आपको भ्रम हैं।
तुम जिस प्रकार यहां आ गई हो।
वह बड़ी कथा है। यह कह गुलेनार ने लम्बी सांस ली,उसकी आँखें आँसु से भर गई।
क्या मैं सुन सकता हूँ?
क्यों नहीं,पर सुनकर गया कीजिए।अब इतना ही समझ लीजिए कि मैं एक मुसलमानी वेश्या हैं ।
नहींं गुलेनार,तुम्हारा नाम क्या है, सच-सच बताओ।
मेरा नाम तारा है।मैं हरद्वार की रहने वाली हूँ।अपने पिता के साथ काशी में ग्रहण नहाने गई थी।बड़ी कठिनता से मेरा विवाह ठीक हो गया था।काशी से लौटते ही मैं एकः कुल की स्वामिनी बनती; परन्तु दुर्भाग्य...!-उसकी भरी आंखों से आंसू गिरने लगे।
धीरज घरो तारा। अच्छा यह तो बताओ, यहाँ कैसी कटती हैं?
मेरा भगवान जानता है कि कैसे कटती है।दुष्टों के चंगुल में पड़कर मेरा आहार-व्यवहार तो नष्ट हो चुका, केवल सर्वनाश होना बाकी है। उसमें कारण है अम्मा का लोभ।और मेरा कुछ आनेवालों से ऐसा व्यवहार भी होता है कि अभी वह जितना रूपया चाहती है, नहीं मिलता। बस इसी प्रकार बची जा रही हूँ। परन्तु कितने दिन गुलेनार सिसकने लगी।
मंगलदेव ने कहा-तारा, तुम यहाँ से क्यों नही निकल भागती?
निकलकर कहाँ जाऊँ?
मंगलदेव चुप रह गया। वह सोचने लगा-मूढ़ समाज इसे शरण देगा?