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नहीं पाई ? इन सायि श्रीचन्द्र बहु-सा दान-धर्म करा रहे हैं, हम तुम भी तो भिधर्मगे टरे-चलो न ! टोन के पात्र में उन पर विजय जुठ या हुआ। दोनों ने । फितनी ही गनिम पार कर यि और गमुना पन्हें ये पर पर । मुले घातन में fगोरी मिटाई गई । । दाग के सामान बिखरे ये । श्रीचन्द्र मोहन हो कर दूगर कमरे में जाते हुए बोने-यमुना। देखो, इसे भी कुछ दिखा दो । मेरा निस त्रिरा रहा है, गौहन को लेकर इधर हैं: बुला लेना । और दो-तीन दारियाँ थीं। यमुना ने इन्हें हटने का संकद्र किया । उन गचने समझाई मझात्मा पद देने आया है, ५ हट गई । विनय किशोरी के फै। पैः पारा ठ गया। यमुना में उसके कानों में महा-भैया आर्य शिरी ने अतिं पाप दी। बिजय ने पैरों पर सिर रख दिया । विशोरीके ॥ अव हिलत न थे। यह कुछ बनना चाहतंथो; पर औयों से अपने मगे। विजय ने अपने मकिन हाथों से इन पोछा। एक बार किशोरी ने उसे दैग, अयो । अध्र बल देपर दंया; पर ये 8 पृप्ती रह गई । विजय र पैरों पर गिर कर उई पड़ा है। चराने मन-ही-मने कहा-मेरे इन युपमेय शरीर को जन्म देने वाली दुविया जानौं ! गुमसे ऋण नहीं हो यार ! मेह जयं दार जा रहा था, यमुना रो पड़ी, सय दौड़ आने । इस घटना को बहुत दिन बीत गये। विजय बहीं पड़ा हुन था । मुनी निम ड्रग रोड़ी ६ आत, पह नियरि मात्र से उस अट्री मारा ।। ११ दिन प्रभात । जव चपा को माता गंगा नै पा र बिजने सगी पी, पिंजरे में ये पी। धीरे से अपने पास से एक पत्र निकालकर वह गान पगाह , यि में रामार हो तो इ स हैं।...पने दोनों पर गुम राौगा। कि वे पाहे मेरे न हो, तब भी जुड़े ऐसी गंवा हो रहा है कि सारा ( तुम्हारी गगुरा) थी माता रामा में गंरा अमैग्र नाम्न्ध अपने म अन गई । रहा। प- जिग य य में गूि आ मे । चराने पत्र ! र ट्राअरे र धारा । तब मैं यह न मिटा, गत क्षीरों में गुर्थ कौ रिशो " अनि-गट पर पह भानः प गये पगा। इग। धरान अड़ गई, महू रिमपिफर ६ सा । भन्तिम गति में नाई अनू महागैया ने दा, गढ़ ग्रसर में प्रगती हुई । उग गन-दी-मग

  1. कप में हैं मायान् । में गुम मर करता है; नत्र व