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•—दन कम होने के यारा लौट आई; उन्हें और न गी । डाकू सोग निरन्न भागे –पुरमादि-इत्यादि । गोली का पद गुनगर पास ही मोसा हुआ भानू भूक उठा, मैं भी पौफ पड़ा । या हि नित, अँधरी रजनों में यह वैशा शाद! मैं नन्पना है बदन को संकट में ममझने लगा । | जब से विवाह-मम्वन्ध को मैंने अस्वीकार पिया, तब से बदन के यहाँ नही जाता था । इधर-उपर उशी खारी घेः द पर पड़ा रहता । पाभ सन्ध्या के समय पुन ? म जाकर कुछ मांग नाता, उसे रुिर गावू और मैं दोनों ही सन्तुष्ट हो जाते । यो प्रारी में जल की कमी तो भी नहीं। आज सड़क पर सन्ध्या को कुछ असाधारण नहल-पहल देखो, इलिए बदन मे; कष्ट ही करुन कर रा ।। गिदारपुर के गाँव में लोग मुझे प्रोपर समझते-पोकि मैं कुते के साधे ही माता है । इम्चल थगन में दयाये, भालू के साथ में, नशा की असो वा एयः आकर्षक बिषय हो गया है। हाँ, तो बदन के राकट को गलाना ने मुद्दाको उत्तेजित कर दिया। में उराके झोप नो योर दना । वहाँ जाकर जब वदन हो घायल कराहते देखा, तब तो में जमकर की सेना करने नगा। तीन दिन बीत गये, बदन की पर भोपण हो पला । जसका घाव भी अगाधारण था, गोली तो निकल गई थी, पर पीट गहरी थी । बदन ने एक दिन भी तुम्हारा नाम न लिया । सन्मा को जब मैं उसे जन गिल्ला हा मा, मैंने बागु-विचार बदन की अखिो में स्पष्ट देवा । उससे धीरे | पु गाला में बुलाऊँ ? सदन गै गए र लिया। मैं अपना कर्तब्य सोचने तगा, फिर निश्चय किया कि झाज तुम्हे बुलाना ही माहिए । | गाना पथ चलते-चलते यह तथा सीप सुन रही धी; पर कुछ न बोली। चरो इस समय यक्ष नृतना ही गुहाता था। | नये जय गाला को लेकर पहुंचा, तब बदन कने अवस्था अत्यन्त भयानमः । ती भी। अनि उसने पैर पकड़कर रोने तगी । बदन ने कष्ट से भोगौं । उठाये, गाला ने अपने शरीर को अत्यन्त की कावैः यदन कै हाग है गिा । मरणोन्मुख बृद्ध पिता ने अपनी बया का सिर गुम निगा। | नये उस समय हुट गया था। वदन ने धीरे ने उसके कान में हुई ।, गाना में भी रामा लिगा अब अन्तिम समय है। वह इंकार रिया : ५।८ ॥ पाच बैठ गई। हाय, उरा दिन की भुवी ध्यिा में उसके पिता हो और { । 11: ' ५3